श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 17

काष्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः।
धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः।। 17 ।।

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पद्यानुवाद

काश्यः च → काशी (वाराणसी) के राजा,

परमेष्वासः → श्रेष्ठ धनुर्धारी,

शिखण्डी च → और शिखण्डी,

महारथः → महान रथी,

धृष्टद्युम्नः → द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न,

विराटः च → और मत्स्यराज विराट,

सात्यकि च → तथा सात्यकि (युयुधान),

अपराजितः → जो अपराजित है।



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भावार्थ (Meaning)

इस श्लोक में पाँच प्रमुख योद्धाओं का उल्लेख है जिन्होंने पांडव पक्ष से शंखनाद किया:

1. काशिराज (King of Kashi)

वाराणसी के राजा।

अपने समय के सबसे श्रेष्ठ धनुर्धारी कहलाए।

उनका युद्ध कौशल पांडवों की सेना को बल देता था।



2. शिखण्डी (Shikhandi)

द्रुपद के पुत्र और अम्बा का पुनर्जन्म।

भीष्म के वध में निर्णायक पात्र।

उन्हें महारथी कहा गया है, यानी अकेले दस हजार योद्धाओं के बराबर सामर्थ्यवान।



3. धृष्टद्युम्न (Dhrishtadyumna)

द्रुपदपुत्र, द्रौपदी के भाई।

वे अग्नि से उत्पन्न हुए थे विशेष रूप से द्रोणाचार्य को मारने के लिए।

महाभारत युद्ध में पांडवों की सेना के सेनापति।



4. विराट (Virata)

मत्स्यराज, जिनके राज्य में पांडवों ने अज्ञातवास का अंतिम वर्ष बिताया।

पांडवों के घनिष्ठ मित्र और सहयोगी।



5. सात्यकि (Satyaki / Yuyudhana)

यादव वंश के पराक्रमी योद्धा।

श्रीकृष्ण के शिष्य और अर्जुन के मित्र।

वे अपराजित कहे गए हैं, अर्थात युद्ध में जिन्हें परास्त करना असंभव था।





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मुख्य शिक्षा

इस श्लोक में दिखाया गया है कि पांडवों के पास न केवल वीर योद्धा थे, बल्कि वे धर्म और नीति के पक्षधर भी थे।

हर योद्धा की कोई न कोई विशेषता है—कोई श्रेष्ठ धनुर्धारी, कोई महारथी, कोई सेनापति, कोई अपराजित।

यह भी संकेत मिलता है कि धर्म की रक्षा के लिए समाज के विभिन्न हिस्सों से महान लोग एकजुट हुए।


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