श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1, श्लोक 18

द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते ।
सौभद्रश्च महाबाहुः शाश्त्रपाणिः प्रथक्प्रथक् ॥1:18

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भावार्थ (सरल अर्थ)

हे धृतराष्ट्र! वहाँ राजा द्रुपद, द्रौपदी के पाँचों पुत्र और अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु, सब-के-सब शस्त्र धारण किए हुए हैं। प्रत्येक वीर अपने-अपने पराक्रम में अद्वितीय और प्रसिद्ध है।


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विशेष विवरण

1. द्रुपद (पांचाल नरेश)

द्रुपद पांचाल देश के महाराज थे।

द्रोणाचार्य और द्रुपद की पुरानी शत्रुता थी।

द्रोणाचार्य ने कभी अपने शिष्यों (पाण्डवों) की सहायता से द्रुपद को बंदी बना लिया था।

अपमानित द्रुपद ने यज्ञ कराकर एक वीर पुत्र धृष्टद्युम्न को प्राप्त किया था, जो आगे चलकर द्रोणाचार्य का वध करता है।


द्रुपद पाण्डवों के ससुर और द्रौपदी के पिता थे, इसलिए इस युद्ध में उनका जुड़ाव व्यक्तिगत और पारिवारिक दोनों रूप से था।



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2. द्रौपदेयाः (द्रौपदी के पाँच पुत्र)

द्रौपदी के प्रत्येक पुत्र अलग-अलग पाण्डव से उत्पन्न हुए थे –

1. प्रतिविन्ध्य – युधिष्ठिर के पुत्र।


2. सुतसोम – भीम के पुत्र।


3. श्रुतकर्मा – अर्जुन के पुत्र।


4. शतानिक – नकुल के पुत्र।


5. श्रुतकीर्ति – सहदेव के पुत्र।



➡️ ये पाँचों पुत्र अभी युवा थे, परन्तु युद्ध कौशल में निपुण और अदम्य साहस वाले थे।
➡️ इनका वर्णन यह दिखाने के लिए है कि पाण्डव सेना में आने वाली पीढ़ी के भी पराक्रमी योद्धा सम्मिलित थे।
➡️ आगे चलकर, कुरुक्षेत्र युद्ध के अंतिम दिन (अश्वत्थामा के आक्रमण में) ये सभी द्रौपदी पुत्र सोते समय मारे गए, जिसे महाभारत का एक करुण प्रसंग माना जाता है।


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3. सौभद्र (अभिमन्यु)

अभिमन्यु अर्जुन और श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा के पुत्र थे।

उन्हें यहाँ “महाबाहु” (अत्यंत बलशाली, महान भुजाओं वाला) कहा गया है।

वे केवल 16 वर्ष के थे, परन्तु उनकी वीरता, युद्धनीति और साहस अद्वितीय था।

अभिमन्यु को युद्धकला की शिक्षा स्वयं अर्जुन और श्रीकृष्ण ने दी थी।

युद्ध में उनका सबसे बड़ा पराक्रम चक्रव्यूह में प्रवेश करना था।

वे उसमें घुस तो गए पर बाहर निकलने की पूर्ण विधि उन्हें ज्ञात नहीं थी।

फिर भी उन्होंने अकेले ही कौरवों की विशाल सेना को रौंद डाला और अंततः वीरगति को प्राप्त हुए।


उनकी मृत्यु महाभारत युद्ध का अत्यंत भावुक और निर्णायक मोड़ थी।



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4. “शस्त्रपाणिः” (हाथों में शस्त्र लिए हुए)

यह संकेत है कि ये सभी योद्धा युद्ध में पूरी तैयारी के साथ उपस्थित थे।

केवल संख्याबल ही नहीं,

बल्कि मानसिक, आध्यात्मिक और शस्त्रबल से भी परिपूर्ण थे।



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5. “पृथक् पृथक्” (प्रत्येक अलग-अलग वीरता में प्रसिद्ध)

इसका आशय है कि ये सभी योद्धा केवल समूह में ही नहीं, बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर भी महान पराक्रमी थे।

प्रत्येक की अपनी पहचान, अपना कौशल और अपना पराक्रम था।

इसका उल्लेख इसलिए किया गया है ताकि धृतराष्ट्र को समझ आ जाए कि पाण्डवों की सेना विविध वीरों से सुसज्जित है।



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संदर्भ

श्लोक 1.4 से 1.18 तक लगातार पाण्डव-पक्ष के वीरों का उल्लेख किया गया है।

दुर्योधन, द्रोणाचार्य को यह दिखाना चाहता था कि पाण्डव सेना में कितने बड़े-बड़े योद्धा हैं।

संजय, यह सब धृतराष्ट्र को सुना रहे हैं, ताकि वह जान सके कि उसके पुत्रों को कितनी बड़ी चुनौती का सामना करना है।



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सार 

👉 इस श्लोक में यह बताया गया है कि पाण्डवों की सेना में केवल वृद्ध राजा और बड़े योद्धा ही नहीं, बल्कि नवयुवक और अगली पीढ़ी के पराक्रमी वीर भी थे।
👉 द्रुपद जैसे अनुभवी राजा, द्रौपदी के पुत्र जैसे नवयुवक राजकुमार और अभिमन्यु जैसा अद्वितीय पराक्रमी वीर – ये सभी मिलकर पाण्डव सेना को और अधिक शक्तिशाली बना रहे थे।

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