श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1, श्लोक 21

अर्जुन उवाच –
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत। ॥ 21 ॥

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शब्दार्थ

अर्जुन उवाच – अर्जुन ने कहा

सेनयोः – दोनों सेनाओं के

उभयोः – बीच

मध्ये – बीच में

रथम् – रथ

स्थापय – खड़ा कीजिए / ले चलिए

मे – मेरे

अच्युत – हे अच्युत (श्रीकृष्ण का नाम, जिसका अर्थ है – जो कभी न गिरें, अडिग)



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भावार्थ

अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा –
“हे अच्युत! मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच में ले चलो।”


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विस्तृत व्याख्या

1. अर्जुन का निवेदन

युद्ध प्रारम्भ होने ही वाला था।

अर्जुन ने कृष्ण से अनुरोध किया कि वे रथ को दोनों सेनाओं के बीच ले चलें ताकि वे सामने खड़े हुए योद्धाओं को ठीक से देख सकें।



2. ‘अच्युत’ नाम का महत्व

अर्जुन ने कृष्ण को अच्युत कहकर संबोधित किया।

अच्युत का अर्थ है – जो कभी अपने धर्म या स्थिति से नहीं गिरते।

यह संकेत है कि कृष्ण सदा स्थिर, निश्चल और पूर्ण सत्य हैं।



3. अर्जुन की मानसिक स्थिति

अभी तक अर्जुन बाहरी रूप से युद्ध हेतु तत्पर दिख रहे थे।

लेकिन जब उन्होंने शत्रु पक्ष में अपने ही बंधु-बांधव, गुरु और मित्रों को देखा, तो उनके मन में करुणा और मोह का भाव जागृत हुआ।

यही कारण है कि उन्होंने सेनाओं के बीच जाकर सबको निकट से देखने की इच्छा प्रकट की।



4. दार्शनिक दृष्टिकोण

यह श्लोक हमें बताता है कि जीवन में निर्णय लेने से पहले हम अक्सर अपनी स्थिति को और स्पष्ट रूप से देखना चाहते हैं।

अर्जुन भी यही करना चाहते थे – युद्ध करने से पहले परिस्थिति को नजदीक से देखना।

लेकिन यही देखने की प्रक्रिया आगे चलकर उनके विषाद योग (शोक और मोह से भरे मन) की शुरुआत कर देती है।





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निष्कर्ष

श्लोक 1.21 में अर्जुन ने कृष्ण से अपने रथ को दोनों सेनाओं के बीच खड़ा करने का अनुरोध किया।

इससे उनके मन की दुविधा और मोह और गहराने लगते हैं।

यहीं से गीता का असली संवाद शुरू होने की भूमिका तैयार होती है।

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