श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1, श्लोक 23
योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः।
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः ॥ 23 ॥
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शब्दार्थ
योत्स्यमानान् – जो युद्ध करने वाले हैं
अवेक्षे अहम् – मैं देखना चाहता हूँ
ये – जो लोग
अत्र – यहाँ
समागताः – एकत्र हुए हैं
धार्तराष्ट्रस्य – धृतराष्ट्र के पुत्र (दुर्योधन) के
दुर्बुद्धेः – दुष्टबुद्धि वाले
युद्धे – युद्ध में
प्रिय-चिकीर्षवः – जिन्हें प्रसन्न करना चाहते हैं / जिनका पक्ष लेना चाहते हैं
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भावार्थ
अर्जुन कहते हैं –
“मैं उन लोगों को देखना चाहता हूँ, जो यहाँ युद्ध के लिए एकत्र हुए हैं और जो इस दुष्टबुद्धि दुर्योधन को प्रसन्न करना चाहते हैं।”
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विस्तृत व्याख्या
1. अर्जुन की दृष्टि
अर्जुन अब और स्पष्ट करते हैं कि वे सिर्फ योद्धाओं को देखना ही नहीं चाहते, बल्कि यह भी जानना चाहते हैं कि कौन लोग दुर्योधन का पक्ष लेकर उसके लिए लड़ने आए हैं।
2. ‘दुर्बुद्धेः’ शब्द का प्रयोग
अर्जुन दुर्योधन को दुर्बुद्धि (दुष्टबुद्धि, कुटिल बुद्धि वाला) कहते हैं।
क्योंकि दुर्योधन ने अन्यायपूर्वक पांडवों का राज्य छीन लिया था और धर्म के विरुद्ध कार्य कर रहा था।
3. अर्जुन की मानसिकता
एक ओर वे धर्म के लिए युद्ध करना चाहते हैं,
लेकिन दूसरी ओर उन्हें अपने ही बंधु-बांधव और गुरु इस अन्यायी पक्ष में खड़े दिख रहे हैं।
यह देखकर उनका मन और अधिक विचलित होने लगता है।
4. दार्शनिक दृष्टिकोण
यह श्लोक बताता है कि जब अधर्म बढ़ता है, तो केवल बुरा व्यक्ति ही नहीं, बल्कि उसके साथ खड़े होने वाले लोग भी दोषी हो जाते हैं।
अर्जुन यही देखना चाहते हैं – कि कौन लोग केवल दुर्योधन को प्रसन्न करने के लिए धर्म का साथ छोड़ चुके हैं।
जीवन में भी हमें यह शिक्षा मिलती है कि संगति बहुत महत्त्वपूर्ण है। अधर्मी के साथ खड़ा होना भी अधर्म में सहभागी होना है।
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निष्कर्ष
गीता 1.23 में अर्जुन यह व्यक्त करते हैं कि वे उन सभी लोगों को देखना चाहते हैं जिन्होंने दुर्योधन जैसे दुष्टबुद्धि व्यक्ति का साथ देने का निर्णय लिया है।
यह श्लोक अर्जुन की असहमति और पीड़ा दोनों को प्रकट करता है।
आगे यही पीड़ा उन्हें युद्ध से विमुख होने की ओर ले जाती है।
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