श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 26
तत्रापश्यत्स्थितान् पार्थः पितॄनथ पितामहान्।
आचार्यान् मातुलान् भ्रातॄन् पुत्रान् पौत्रान् सखींस्तथा॥
श्वशुरान् सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि॥
श्लोक 1.26
अनुवाद (हिंदी में):
उस समय अर्जुन ने वहाँ (अपने रथ में बैठे हुए) स्थित अपने पिताओं, पितामहों, आचार्यों, मामाओं, भाइयों, पुत्रों, पौत्रों और सखाओं को देखा।
भावार्थ (व्याख्या):
जब अर्जुन ने युद्धभूमि में अपने गाण्डीव धनुष के साथ देखा तो उसे सामने केवल शत्रु नहीं बल्कि अपने ही बन्धु-बांधव, गुरुजन और रिश्तेदार दिखाई दिए।
पितॄन् – पिता तुल्य बड़े
पितामहान् – दादा और परदादा
आचार्यान् – गुरुजन
मातुलान् – मामा
भ्रातॄन् – भाई
पुत्रान् – बेटे
पौत्रान् – पोते
सखीन् – मित्र
इस दृश्य ने अर्जुन को गहरी करुणा और मोह में डाल दिया। उसे लगा कि इस युद्ध में जीत चाहे जिसकी भी हो, पराजय निश्चित रूप से संबंधों और आत्मीय जनों की होगी।
👉 यह श्लोक अर्जुन की मानसिक स्थिति को दर्शाता है, जहाँ धर्म और मोह के बीच उसका मन डगमगाने लगता है।
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