भगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 7

          अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम।
          नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते।।1.7।।

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शब्दार्थ (शब्द-शब्द अर्थ)

अस्माकम् = हमारी ओर के

तु = तो

विशिष्टाः = श्रेष्ठ

ये = जो

तान् = उनको

निबोध = जान लो

द्विजोत्तम = हे ब्राह्मणश्रेष्ठ (संजय → धृतराष्ट्र को कह रहे हैं)

नायकाः = सेनापति, प्रमुख वीर

मम सैन्यस्य = मेरी सेना के

संज्ञार्थम् = जानने की सुविधा के लिए

तान् ब्रवीमि ते = उनको मैं तुम्हें बताता हूँ



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भावार्थ (सरल अनुवाद)

हे ब्राह्मणश्रेष्ठ (धृतराष्ट्र)! अब आप हमारी ओर की सेना के उन विशेष प्रमुख योद्धाओं को जान लीजिए। आपकी जानकारी के लिए मैं उनका वर्णन करता हूँ।


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विस्तृत व्याख्या

अब तक (श्लोक 4 से 6 तक) संजय ने पाण्डवों की सेना के प्रमुख महारथियों का वर्णन किया।
लेकिन अब दुर्योधन अपनी ओर (कौरव-पक्ष) के नायकों का वर्णन करता है।

इस श्लोक में दुर्योधन अपने सेनापतियों की ओर ध्यान दिलाते हुए कहता है:
“हे आचार्य (द्रोणाचार्य), पाण्डवों की सेना में अनेक महारथी हैं, लेकिन हमारी सेना में भी कई प्रमुख और समर्थ नायक हैं। उन्हें आप जान लीजिए।”


👉 इसका उद्देश्य यह था कि द्रोणाचार्य को उत्साहित किया जाए और यह विश्वास दिलाया जाए कि कौरव-पक्ष भी किसी से कम नहीं है।

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