श्रीमद्भगवद्गीता" अध्याय 1 का 8 श्लोक
भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिंजयं।
अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च।।1:8
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📝 शब्दार्थ
भीष्मः – भीष्म पितामह
कर्णः – महाबली कर्ण
कृपः – कृपाचार्य
समितिंजयं – युद्ध में विजयी (अर्थात्)
अश्वत्थामा – द्रोणाचार्य का पुत्र
विकर्णः – धृतराष्ट्र का पुत्र विकर्ण
सौमदत्तिः – भूरिश्रवा (सौमदत्त का पुत्र)
तथैव च – उसी प्रकार अन्य भी
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🪔 सरल हिन्दी भावार्थ
धृतराष्ट्र! मेरी सेना में भीष्म पितामह, कर्ण, कृपाचार्य जो युद्ध में सदैव विजयी रहते हैं, द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा, विकर्ण और भूरिश्रवा जैसे महाशूर योद्धा उपस्थित हैं।
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📚 विस्तृत व्याख्या
इस श्लोक में दुर्योधन, अपनी सेना के प्रमुख योद्धाओं के नाम गिनाता है।
1. भीष्म पितामह – कौरव सेना के प्रधान सेनापति। वे आजीवन ब्रह्मचारी और असाधारण योद्धा थे।
2. कर्ण – महारथी, दानवीर और अर्जुन के समकक्ष धनुर्धर।
3. कृपाचार्य – हस्तिनापुर के राजगुरु और शस्त्रविद्या के आचार्य।
4. अश्वत्थामा – द्रोणाचार्य का पुत्र, महान योद्धा और अमरत्व प्राप्त।
5. विकर्ण – धृतराष्ट्र का पुत्र, कौरवों में सबसे न्यायप्रिय। उसने द्रौपदी-चीरहरण में भी उसका विरोध किया था।
6. भूरिश्रवा (सौमदत्ति) – प्रख्यात योद्धा, जिनका वंश बल-पराक्रम में प्रसिद्ध था।
👉 इस श्लोक में दुर्योधन यह जताना चाहता है कि उसकी सेना में सिर्फ संख्या ही नहीं, बल्कि वीरता और महान सेनानायकों का भी अपार बल है।
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🌸 सारांश
दुर्योधन ने अपनी सेना का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए और भीष्म पर पूरा भरोसा दिखाने के लिए इन योद्धाओं की गिनती की। यह श्लोक युद्ध की राजनीतिक और मानसिक चाल को दर्शाता है – जहाँ सेनापति अपने पक्ष को मजबूत दिखाने के लिए वीरों का गुणगान करता है।
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