श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 34

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 34


आचार्याः पितरः पुत्रास्तथैव च पितामहाः।
मातुलाः श्वशुराः पौत्राः श्यालाः सम्बन्धिनस्तथा।। 1.34 ।।

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हिंदी भावार्थ (विस्तार से):

इस श्लोक में अर्जुन अपने सामने खड़े युद्ध में शामिल लोगों की ओर संकेत करते हैं। वे कहते हैं –
हे कृष्ण! इस युद्ध में मुझे अपने आचार्य (गुरुजन), पितर (बड़े-बुजुर्ग), पुत्र, पितामह (दादा-परदादा समान), मातुल (मामा), श्वशुर (ससुर), पौत्र (पोते-पोतियाँ), श्याल (साले), और अन्य सम्बन्धी दिखाई देते हैं।

अर्जुन की स्थिति बहुत दुविधापूर्ण हो रही है। उनका मन करुणा से भर गया है और वे सोचते हैं कि यदि इस युद्ध में विजय पाने के लिए उन्हें अपने ही गुरुओं, बड़ों और परिवार के प्रिय सदस्यों का वध करना पड़े, तो ऐसी विजय का क्या लाभ होगा?


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विस्तृत व्याख्या:

1. आचार्य: यहाँ द्रोणाचार्य की ओर संकेत है, जो अर्जुन के गुरु थे।


2. पितरः: बड़े-बुजुर्ग या पिता समान।


3. पुत्राः: युद्ध में भाग लेने वाले कौरव और पांडव कुल के पुत्र।


4. पितामहाः: भीष्म पितामह, जो दोनों कुलों के पूज्यनीय थे।


5. मातुलाः: शकुनि जैसे मामा।


6. श्वशुराः: दुर्योधन आदि के पक्ष में जुड़े श्वसुर।


7. पौत्राः: संतानों की संतानें।


8. श्यालाः: बहनों के पति।


9. सम्बन्धिनः: अन्य रिश्तेदार व मित्रगण।



अर्जुन यह देखकर और भी अधिक विचलित हो जाते हैं कि इस युद्ध में केवल शत्रु ही नहीं, बल्कि उनके अपने प्रिय और पूजनीय संबंधी भी सम्मिलित हैं। इसलिए उनका हृदय करुणा से भर जाता है और वे युद्ध करने की इच्छा खो देते हैं।

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