भगवद् गीता अध्याय 1 श्लोक 42
भगवद् गीता अध्याय 1 श्लोक 42
सङ्करो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च ।
पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः ॥ 1.42॥
🕉️ हिन्दी अनुवाद:
वंश का नाश करने वाले और जिनके वंश का नाश हो जाता है, वे दोनों ही नरक को प्राप्त होते हैं, क्योंकि उनके पितर (पूर्वज) भी पिण्डदान और जल अर्पण की क्रिया से वंचित हो जाते हैं।
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📖 विस्तृत अर्थ:
इस श्लोक में अर्जुन यह कह रहे हैं कि —
जब किसी कुल (परिवार या वंश) का नाश होता है, तब कुल-धर्म नष्ट हो जाता है।
कुल-धर्म नष्ट होने से समाज में अधर्म बढ़ जाता है।
ऐसे में न केवल वर्तमान पीढ़ी, बल्कि पूर्वज भी दुखी होते हैं, क्योंकि उन्हें श्राद्ध, पिण्डदान और तर्पण आदि धार्मिक क्रियाएं नहीं मिल पातीं।
इससे वे स्वर्ग से पतित होकर नरक में चले जाते हैं।
अर्थात, अर्जुन यह समझा रहे हैं कि युद्ध करने से न केवल जीवित लोगों को हानि होगी, बल्कि पूर्वजों की आत्माओं को भी कष्ट पहुँचेगा।
इसलिए युद्ध करना उन्हें अधार्मिक और अनैतिक प्रतीत हो रहा है।
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💡 मुख्य शिक्षा:
यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि —
कुल-धर्म और परंपरा का पालन करना महत्वपूर्ण है।
धर्म का नाश होने से समाज और परिवार दोनों में अव्यवस्था फैलती है।
अपने कर्म ऐसे करने चाहिए जिससे पूर्वज, परिवार और समाज तीनों का कल्याण हो।
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