भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 1
भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 1
सञ्जय उवाच —
तं तथा कृपयाऽविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्।
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः॥
भावार्थ
संजय ने कहा — उस समय करुणा से व्याप्त, आँसुओं से भरी आँखों वाले और अत्यंत शोकाकुल अर्जुन को देखकर भगवान श्रीकृष्ण, जो मधुसूदन नाम से प्रसिद्ध हैं, ने ये वचन कहे।
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शब्दार्थ :
सञ्जय उवाच — सञ्जय ने कहा,
तं — उस (अर्जुन को),
तथा — उस प्रकार,
कृपया आविष्टम् — करुणा से व्याप्त,
अश्रु-पूर्ण-आकुल-ईक्षणम् — आँसुओं से भरी, व्याकुल आँखों वाला,
विषीदन्तम् — अत्यंत शोकाकुल,
इदं वाक्यम् — ये वचन,
उवाच — कहा,
मधुसूदनः — भगवान श्रीकृष्ण (जिन्होंने मधु नामक असुर का वध किया)।
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व्याख्या :
इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश का आरंभ होता है। अर्जुन युद्धभूमि में अपने स्वजनों को देखकर अत्यंत दुखी हो गया था — उसकी आँखें आँसुओं से भर गई थीं, मन करुणा से भर गया था और वह मानसिक रूप से विचलित हो चुका था।
संजय, जो यह दृश्य धृतराष्ट्र को सुना रहे हैं, बताते हैं कि जब भगवान ने अर्जुन की यह अवस्था देखी — आँसुओं से भीगी आँखें, करुणा और मोह में डूबा हुआ मन — तब उन्होंने उसे ज्ञान देने का निश्चय किया।
यह श्लोक संकेत देता है कि कर्म, धर्म और आत्मा के ज्ञान की शिक्षा अब प्रारंभ होने वाली है।
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन की इस दयनीय स्थिति को देखकर करुणा के साथ उसे सच्चा ज्ञान देने की प्रेरणा पाई।
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मुख्य संदेश:
यह श्लोक बताता है कि जब मनुष्य मोह, दया और असमंजस में फँस जाता है, तब भगवान (या गुरु) उसे सच्चे ज्ञान का मार्ग दिखाने के लिए प्रेरित होते हैं। यही से गीता का उपदेश आरंभ होता है।
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