✨ भगवद गीता अध्याय 2, श्लोक 10 ✨🌸

✨ भगवद गीता अध्याय 2, श्लोक 10 ✨🌸

(श्रीकृष्ण का ज्ञान प्रारंभ होने से पहले का सुंदर दृश्य)

🕉️ श्लोक

तं तथा कृपयाऽविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्।
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः॥

💫 हिन्दी अनुवाद:
इस प्रकार करुणा से अभिभूत, आँसुओं से भरी हुई आँखों वाले, शोक से पीड़ित अर्जुन से मधुसूदन श्रीकृष्ण ने यह वचन कहा। 🙏🌿


विस्तृत भावार्थ :

यह श्लोक गीता के अत्यंत महत्वपूर्ण क्षण का वर्णन करता है —
युद्धभूमि में अर्जुन पूर्ण रूप से निराश हो चुके हैं 😔।
उनका मन करुणा से भरा हुआ है 💧, आँखें आँसुओं से नम हैं 😢,
और उनके विचारों में केवल एक ही द्वंद्व है —
“अपने ही स्वजनों को कैसे मार दूँ?” 💔

भगवान श्रीकृष्ण ने जब यह देखा कि अर्जुन अब युद्ध करने की स्थिति में नहीं हैं,
उनका मन मोह, दया और भ्रम से पूरी तरह ग्रसित है —
तो उन्होंने मुस्कराते हुए अर्जुन से संवाद प्रारंभ किया 😊💫।


🌻 "मधुसूदन" शब्द का अर्थ और महत्व:

> "मधुसूदन" का अर्थ है — मधु नामक असुर का नाश करने वाले भगवान श्रीकृष्ण।
यह नाम यह संकेत देता है कि अब भगवान अर्जुन के भीतर के मोह रूपी असुर का नाश करने वाले हैं ⚡🔥।
जिस प्रकार उन्होंने बाहरी दैत्य का वध किया था,
अब वे अर्जुन के मन के अंधकार को मिटाने वाले हैं 🌞।


🌷 भावनात्मक दृष्टिकोण :

अर्जुन की स्थिति आज के मानव के समान है —
जब हम जीवन में किसी कठिन निर्णय के सामने खड़े होते हैं 😞,
हमें अपने ही प्रिय जनों के प्रति दया आती है 💔,
और हम यह भूल जाते हैं कि धर्म क्या है, कर्तव्य क्या है ⚖️।

ऐसी ही अवस्था में भगवान श्रीकृष्ण हमें आध्यात्मिक दृष्टि प्रदान करते हैं 👁️🕊️।
वे हमें यह सिखाते हैं कि जीवन में दुःख, मोह और कमजोरी के क्षणों में भी
कर्तव्य और सत्य के मार्ग से पीछे नहीं हटना चाहिए 💪🪔।


🌼 इस श्लोक से सीख :

🌟 जब जीवन में भावनाएँ बुद्धि पर हावी हो जाएँ —
तब शांति और भगवान का स्मरण ही समाधान है।

🌟 जैसे अर्जुन की आँखों से आँसू बह रहे थे 😢,
वैसे ही हमारे जीवन में भी भ्रम और दुख के पल आते हैं,
परंतु अगर हम श्रीकृष्ण की तरह किसी “मार्गदर्शक” से प्रेरणा लें 💫,
तो हम अपने भीतर के भ्रम को मिटा सकते हैं।

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