✨ भगवद गीता अध्याय 2, श्लोक 11 ✨
✨ भगवद गीता अध्याय 2, श्लोक 1 1✨
(श्री भगवान बोले )
🕉️ श्लोक
श्रीभगवान उवाच: –
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे।
गतासूनगतासु च नानुशोचन्ति पण्डिताः॥
💫 हिन्दी अनुवाद:
भगवान कहते हैं:
“हे अर्जुन! तुम शोक क्यों कर रहे हो? तुम जो कहना चाहते हो वह ज्ञान से नहीं हो रहा। जो व्यक्ति ज्ञानी होता है, वह इस संसार में मृतकों के लिए शोक नहीं करता और न ही भविष्य के लिए चिंता करता है।”
विस्तृत भावार्थ :
1. अशोच्यान्:
‘अ’ का अर्थ है नकार, और ‘शोच्य’ का अर्थ है शोक करने योग्य।
अर्थात, “जिसके लिए शोक करना उचित नहीं है।”
अर्जुन जिस कारण से शोक कर रहे हैं, वह गलत है, क्योंकि मृत्यु केवल शरीर की होती है, आत्मा अमर है।
2. अन्वशोचः:
‘अन्व’ का अर्थ है ‘परंतु’, ‘शोकः’ का अर्थ है दुःख।
“तुम जो शोक कर रहे हो, वह अनुचित है।”
-
3. त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे:
अर्जुन ज्ञान के आधार पर बोल रहे हैं, लेकिन उनका ज्ञान अपूर्ण है।
वे केवल शरीर की मृत्यु और युद्ध के भय में डूबे हुए हैं।
4. गतासूनगतासु च नानुशोचन्ति पण्डिताः:
जो ज्ञानी होते हैं (पंडित), वे मृतकों के लिए शोक नहीं करते।
क्योंकि आत्मा कभी मरती नहीं; शरीर तो केवल आवरण है।
इसी कारण वे अतीत और भविष्य के लिए भी अनावश्यक चिंता नहीं करते।
🌼 इस श्लोक से सीख :
🌟 आत्मा अमर है, केवल शरीर मरता है।
ज्ञानियों को मृत्यु या क्षणिक घटनाओं पर शोक नहीं होता।
हमें भी अनावश्यक दुख और चिंता छोड़कर कर्म और धर्म पर ध्यान देना चाहिए।
शोक करना, केवल अनभिज्ञता का प्रतीक है।
------------------------------------------------------------------------
Comments
Post a Comment