भगवद गीता अध्याय 2 श्लोक 12
✨ भगवद गीता अध्याय 2, श्लोक 1 2✨
(श्री भगवान बोले )
🕉️ श्लोक
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः।
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्॥
💫 हिन्दी अनुवाद:
न तो ऐसा कभी हुआ है कि मैं नहीं था, न तुम थे, और न ये राजा थे — और न ही आगे कभी ऐसा होगा कि हम सब नहीं रहेंगे।
🌻 श्लोक का भावार्थ :
श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं —
हे अर्जुन! तू यह मत समझ कि मृत्यु के बाद सबका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। मैं, तुम, और ये सब राजा — सब पहले भी थे, अब भी हैं, और आगे भी रहेंगे।
आत्मा कभी नष्ट नहीं होती, वह केवल शरीर बदलती है। शरीर मरता है, पर आत्मा अमर है।
विस्तृत भावार्थ :
यह श्लोक आत्मा की अमरता का गहरा संदेश देता है।
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को यह समझा रहे हैं कि —
1. आत्मा कभी जन्म नहीं लेती और कभी मरती नहीं।
यह अनादि (शुरुआत से पहले की) और अनन्त (कभी समाप्त न होने वाली) है।
2. मृत्यु केवल शरीर की होती है, आत्मा की नहीं।
जैसे कोई व्यक्ति पुराने कपड़े उतारकर नए पहनता है, वैसे आत्मा भी एक शरीर छोड़कर दूसरा धारण करती है।
3. इसलिए शोक करना व्यर्थ है।
जो नष्ट नहीं होता, उसके लिए दुख करना अज्ञान का लक्षण है।
4. भगवान स्वयं भी शाश्वत हैं।
वे, अर्जुन, और सब प्राणी — सभी किसी न किसी रूप में सदैव विद्यमान हैं
🌼 इस श्लोक से सीख :
🌟
आत्मा अमर है, मरता केवल शरीर है।
जीवन अस्थायी है, पर आत्मा अनन्त है।
मृत्यु अंत नहीं, एक नया आरंभ है।
सच्चा ज्ञान यह है कि हम शरीर नहीं, आत्मा हैं।
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