भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 14
🌿 श्लोक 2.14
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत॥
🕉️ हिंदी अनुवाद
हे कुन्तीपुत्र (अर्जुन)! इन्द्रियों के विषयों के संपर्क से शीत (ठंड) और उष्ण (गर्मी), सुख और दुःख की अनुभूति होती है।
वे सब आते-जाते हैं, अनित्य (स्थायी नहीं) हैं। इसलिए हे भारत! तू उन्हें सहन कर।
📖 विस्तृत व्याख्या
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि —
जीवन में सुख-दुःख, लाभ-हानि, ठंड-गर्मी, मान-अपमान जैसी सभी स्थितियाँ अस्थायी हैं।
ये केवल हमारे इन्द्रियों और बाहरी वस्तुओं के संपर्क से उत्पन्न होती हैं।
जैसे सर्दी में ठंड लगती है और गर्मी में गर्मी — पर ये दोनों ही थोड़े समय के लिए होते हैं।
इसी प्रकार, जीवन में आने वाले सुख और दुःख भी स्थायी नहीं हैं।
👉 इसलिए श्रीकृष्ण अर्जुन को सिखाते हैं कि —
जो व्यक्ति इन स्थितियों में स्थिर रहता है,
जो सहनशील (तितिक्षु) बन जाता है,
वही सच्चे अर्थों में शांति और ज्ञान को प्राप्त करता है।
🌸 आध्यात्मिक संदेश
जीवन में आने वाले सुख-दुःख को समान भाव से सहन करना चाहिए।
हर स्थिति अस्थायी है — न सुख सदा रहता है, न दुःख।
सहनशीलता और धैर्य ही जीवन का सबसे बड़ा बल है।
जो व्यक्ति हर परिस्थिति में संतुलित रहता है, वही सच्चा योगी है।
💬 संक्षेप में :
> सुख-दुःख, ठंड-गर्मी अस्थायी हैं, इन्हें सहन करना ही बुद्धिमानी है।
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