भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 15
भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 15
📜 श्लोक 2.15
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ।
समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते।।
🌼 हिंदी अनुवाद:
हे अर्जुन! हे श्रेष्ठ पुरुष! जिसे ये (सुख-दुःख, शीत-उष्ण आदि द्वंद्व) विचलित नहीं करते, जो सुख और दुःख में समान रहता है, वह धीर पुरुष अमरत्व (मोक्ष) के योग्य होता है। ✨
🌺 विस्तृत व्याख्या :
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं 👇
🪷 1. जीवन में सुख और दुःख दोनों आते हैं:
संसार में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसे केवल सुख या केवल दुःख मिले। दोनों का आना स्वाभाविक है — जैसे दिन के बाद रात आती है। 🌞🌙
🪷 2. जो व्यक्ति इनसे प्रभावित नहीं होता:
जो व्यक्ति इन परिस्थितियों में अपने मन को स्थिर रखता है — न अत्यधिक प्रसन्न होता है, न ही अत्यधिक दुःखी — वही सच्चा धीर (अडिग) व्यक्ति कहलाता है। 💪🧘♂️
🪷 3. धैर्य और समता का महत्व:
सुख और दुःख में समान रहना, यानी दोनों को ईश्वर की लीला मानकर स्वीकार करना, मोक्ष की ओर पहला कदम है। 🙏
🪷 4. अमृतत्व (मोक्ष) की प्राप्ति:
ऐसे धैर्यवान और समदर्शी व्यक्ति को मृत्यु के बाद अमरत्व — अर्थात् मोक्ष या मुक्ति प्राप्त होती है। 🌈💫
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💖 जीवन के लिए संदेश:
➡️ जब जीवन में कठिनाइयाँ आएं, तो घबराएं नहीं।
➡️ जब खुशियाँ आएं, तो अहंकार न करें।
➡️ दोनों को समान दृष्टि से देखें।
➡️ यही संतुलन आपको आंतरिक शांति और ईश्वर के करीब ले जाता है। 🌿✨
🌸 प्रेरणादायक पंक्ति :
> “सुख-दुःख में समान रहने वाला ही सच्चा विजेता है।” 💫
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