भगवद गीता अध्याय 2 श्लोक 16

भगवद गीता अध्याय 2 श्लोक 16

श्लोक:

नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः।
उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः।।


🔹 हिंदी अनुवाद:
असत (जो अस्तित्वहीन है) का कभी अस्तित्व नहीं होता, और सत (जो सदा विद्यमान है) का कभी अभाव नहीं होता। इन दोनों का यह निष्कर्ष तत्त्वदर्शी ज्ञानी पुरुषों द्वारा देखा गया है।


🌼 विस्तृत व्याख्या :

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को यह समझा रहे हैं कि —
👉 जो चीज़ अस्थायी (नाशवान) है, उसका अस्तित्व सदा नहीं रहता।
जैसे — शरीर, वस्तुएँ, सुख-दुःख, जन्म-मृत्यु — ये सब परिवर्तनशील हैं। 🕰️
एक समय आते हैं और एक दिन समाप्त हो जाते हैं।

👉 वहीं जो चीज़ सत्य और शाश्वत (अविनाशी) है, उसका कभी नाश नहीं होता।
यह “आत्मा ” है — जो न जन्म लेती है, न मरती है, वह सदा विद्यमान रहती है। ✨

🪶 उदाहरण:
जैसे बादल आते-जाते रहते हैं ☁️, लेकिन आकाश हमेशा बना रहता है 🌌।
उसी प्रकार शरीर और संसार की चीज़ें आती-जाती हैं,
परंतु आत्मा सदा रहती है — वह सच्चा "सत्" है। 🙏


💫 भावार्थ :

हमें अस्थायी चीज़ों पर शोक या मोह नहीं करना चाहिए,
क्योंकि वे बदलने वाली हैं। 😌

हमें अपने सच्चे स्वरूप — आत्मा को पहचानना चाहिए,
जो सदा शांत, अजर, अमर और आनंदमय है। 🌺


Bhagavad Gita Chapter 2, Verse 16 in English

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