भगवद गीता अध्याय 2 श्लोक 18
भगवद गीता अध्याय 2 श्लोक 18
                       
               श्लोक 2:18
अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः।
अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत॥
🌿 हिंदी अर्थ :
ये शरीर नाशवान हैं, परन्तु आत्मा नित्य, अविनाशी और अपरिमेय (जिसका मापन नहीं किया जा सकता) है।
इसलिए, हे भारत (अर्जुन)! तू युद्ध कर।
💫 विस्तृत व्याख्या :
इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को आत्मा और शरीर के अंतर को समझा रहे हैं।
शरीर (Deha) — यह मिट्टी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है। इसका जन्म होता है और यह समय आने पर नष्ट हो जाता है।
आत्मा (Ātmā) — यह जन्मरहित, अविनाशी और अपरिवर्तनीय है। यह केवल शरीर बदलती है, जैसे मनुष्य पुराने वस्त्र त्यागकर नए पहन लेता है।
संदेश (Message): मनुष्य को शरीर के नाश से दुखी नहीं होना चाहिए, क्योंकि वास्तविक “मैं” आत्मा है जो कभी नहीं मरती। इसलिए कर्म करते रहो — यही धर्म है।
प्रेरणादायक संदेश :
> शरीर अस्थायी है, आत्मा शाश्वत।
जो नाशवान को छोड़कर नित्य पर ध्यान देता है, वही सच्ची शांति पाता है।
Comments
Post a Comment