भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 22
भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 22
🌿 श्लोक 2.22
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा
न्यान्यन्यानी संयाति नवानि देही ॥
अनुवाद:
जिस प्रकार मनुष्य पुराने कपड़ों को त्याग कर नये वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा भी पुराने और जीर्ण शरीर को छोड़कर नये शरीर को ग्रहण करता है।
🌼 भावार्थ :
इस श्लोक में श्रीकृष्ण जी अर्जुन को आत्मा की अमरता और शरीर की नश्वरता समझा रहे हैं। जैसे कोई व्यक्ति अपने पुराने कपड़े त्याग कर नए पहन लेता है, वैसे ही आत्मा भी जब एक शरीर पुराना या अनुपयोगी हो जाता है, तो उसे छोड़कर नया शरीर धारण कर लेती है।
👉 इसका अर्थ यह है कि मृत्यु केवल शरीर की होती है, आत्मा की नहीं।
आत्मा तो शाश्वत, अजन्मा और अविनाशी है। इसलिए किसी के मरने पर शोक करना उचित नहीं, क्योंकि आत्मा तो केवल रूप बदलती है — अस्तित्व समाप्त नहीं होता।
🌹 मुख्य संदेश :
आत्मा अमर है।
मृत्यु केवल शरीर का परिवर्तन है।
शोक का कारण अज्ञान है।
जीवन का चक्र निरंतर चलता रहता है।
प्रेरणादायक विचार :
"जो आत्मा के सत्य को समझ लेता है, उसके लिए मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है।" 🙏
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