भगवद् गीता अध्याय 2, श्लोक 23
भगवद् गीता अध्याय 2, श्लोक 23
📜 श्लोक 2.23
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥
💫 भावार्थ
आत्मा न तो किसी अस्त्र-शस्त्र से काटी जा सकती है,
न ही अग्नि से जलाई जा सकती है,न ही जल से गीली की जा सकती है, और न ही वायु से सुखाई जा सकती है।
🕉️ विस्तृत व्याख्या
यह श्लोक आत्मा की अविनाशी, अजर-अमर और शाश्वत प्रकृति को दर्शाता है।
श्रीकृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं कि —
जिस आत्मा के लिए तुम शोक कर रहे हो, वह नाशवान नहीं है।
1. 🔱 शस्त्रों से न काटी जा सकती है:
आत्मा कोई भौतिक वस्तु नहीं है जिसे तलवार, बाण या किसी भी अस्त्र से नष्ट किया जा सके।
शरीर नष्ट होता है, आत्मा नहीं।
2. 🔥 अग्नि से न जलाई जा सकती है:
जैसे अग्नि लकड़ी को जलाकर भस्म कर देती है, परंतु आत्मा अग्नि के परे है।
वह ऊर्जा और प्रकाश का कारण है, स्वयं अग्नि भी आत्मा का नाश नहीं कर सकती।
3. 💧 जल से न गीली की जा सकती है:
आत्मा जल या किसी भी तरल पदार्थ से प्रभावित नहीं होती।
यह इंगित करता है कि आत्मा में कोई परिवर्तन (modification) नहीं होता।
4. 🌬️ वायु से न सुखाई जा सकती है:
आत्मा न तो सूख सकती है, न उसमें कोई नमी या कठोरता आती है।
वह पदार्थ नहीं, बल्कि चेतना का शुद्ध स्वरूप है।
🌼 दार्शनिक अर्थ:
यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि —
> आत्मा अविनाशी और अजर-अमर है।
शरीर का नाश होता है, लेकिन आत्मा सदैव बनी रहती है।
अतः मृत्यु या किसी भी परिवर्तन से भयभीत नहीं होना चाहिए।
💖 प्रेरणादायक संदेश:
जब हम यह समझ लेते हैं कि हम शरीर नहीं, आत्मा हैं,
तो जीवन के दुख, भय और हानि हमें विचलित नहीं कर पाते।
यह ज्ञान हमें शांति, साहस और स्थिरता प्रदान करता है।
🌺 शब्दार्थ :
न एनम् (na enam) — इसे (आत्मा को)
छिन्दन्ति (chhindanti) — काट सकते हैं
शस्त्राणि (śastrāṇi) — अस्त्र-शस्त्र
न दहति (na dahati) — नहीं जला सकता
पावकः (pāvakaḥ) — अग्नि
न क्लेदयन्ति (na kledayanti) — गीला नहीं कर सकते
आपः (āpaḥ) — जल
न शोषयति (na śoṣayati) — सुखा नहीं सकता
मारुतः (mārutaḥ) — वायु
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