भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 20
भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 2 🕉️ श्लोक न जायते म्रियते वा कदाचि- न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः। अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥ 🪷 अनुवाद : यह आत्मा न तो कभी जन्म लेती है, न ही कभी मरती है। यह न तो पहले कभी उत्पन्न हुई थी, न भविष्य में होगी। यह अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है। शरीर के नाश होने पर भी यह आत्मा नाश नहीं होती। 🕊️ विस्तारपूर्वक अर्थ : भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि आत्मा अमर है। शरीर तो केवल एक वस्त्र की तरह है, जो पुराना हो जाने पर बदल दिया जाता है, परंतु आत्मा कभी नहीं मरती। जन्म और मृत्यु केवल शरीर के लिए हैं — आत्मा तो अविनाशी , अपरिवर्तनीय और अनादि है। यह शाश्वत तत्व हर जीव के भीतर विद्यमान है। इसलिए किसी की मृत्यु पर शोक नहीं करना चाहिए, क्योंकि वास्तव में कोई मरता ही नहीं — केवल शरीर बदलता है। 💫 प्रेरणादायक संदेश : 👉 यह श्लोक हमें सिखाता है कि सच्चा आत्मा अमर है। 👉 डर, दुख औ...