भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 9
🕉️ भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 9 🕉️
✨ "शिष्यः अर्जुन का आत्मसमर्पण" ✨
📜 श्लोक 2.9 :
सञ्जय उवाच —
एवम् उक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेशः परन्तपः।
न योत्स्य इति गोविन्दम् उक्त्वा तूष्णीं बभूव ह॥
💬 हिंदी अनुवाद:
संजय ने कहा — इस प्रकार कहकर, नींद को जीतने वाले गुडाकेश (अर्जुन) ने, हे परंतप (धृतराष्ट्र)! हृषीकेश (श्रीकृष्ण) से कहा — “मैं युद्ध नहीं करूंगा।” यह कहकर वे मौन हो गए। 🤫⚔️
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🌼 विस्तृत व्याख्या :
👉 इस श्लोक में अर्जुन की मनःस्थिति को दर्शाया गया है।
उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि अब वे युद्ध नहीं करेंगे। 🛑
💔 अर्जुन के हृदय में दया, मोह और परिवार के प्रति लगाव था —
वे सोच रहे थे कि अपने ही भाइयों, गुरुओं और संबंधियों का वध कैसे करें?
इस मानसिक द्वंद्व में वे असमंजस में पड़ गए और युद्ध से पीछे हटने का निश्चय किया।
🙏 लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि अर्जुन ने अब अपने को शिष्य और कृष्ण को गुरु के रूप में स्वीकार किया था।
इसलिए यह मौन केवल हार नहीं थी, बल्कि आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत थी। 🌱
🔥 भगवान श्रीकृष्ण अब उन्हें ज्ञान देने वाले थे — यही से गीता का उपदेश प्रारंभ होता है।
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🌟 सीख :
जब मन में भ्रम और दुःख हो, तो मौन होकर गुरु या ईश्वर से मार्गदर्शन लेना चाहिए। 🙏
हार मानना नहीं, बल्कि सही ज्ञान पाने की दिशा में कदम बढ़ाना ही सच्चा समाधान है। 💪
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