भगवद् गीता अध्याय 2, श्लोक 6

              भगवद् गीता अध्याय 2, श्लोक 6

न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरीयो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयुः।
यानेव हत्वा न जिजीविषामः तेऽवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः॥
                               गीता 2:6
    
🕉 हिंदी अनुवाद:

हमें यह भी नहीं पता कि हमारे लिए क्या अच्छा है — हम जीतेंगे या वे जीतेंगे। जिन्हें मारकर हम जीना नहीं चाहते, वे ही हमारे सामने खड़े हैं — धृतराष्ट्र के पुत्र।

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📖 विस्तार से व्याख्या:

इस श्लोक में अर्जुन का मन पूरी तरह से संशय और दुविधा से भरा हुआ है। वह युद्धभूमि में खड़ा होकर सोच रहा है कि —

> “अगर हम जीत भी गए, तो क्या फायदा? हमारे ही बंधु, गुरु और मित्र मारे जाएंगे। और यदि हम हार गए, तो सब कुछ खो जाएगा।”



अर्जुन के मन में कर्तव्य और करुणा के बीच संघर्ष है।
वह सोच रहा है कि —

अगर हम उन्हें मारेंगे तो पाप लगेगा।

अगर हम नहीं मारेंगे तो धर्म और न्याय का नाश हो जाएगा।
इस दुविधा में वह सही निर्णय नहीं ले पा रहा।


यह श्लोक दर्शाता है कि जब मन मोह, ममता और भावनाओं में उलझ जाता है, तब विवेक काम नहीं करता।
अर्जुन जैसे महान योद्धा भी उस समय अपने धर्म (कर्तव्य) को नहीं समझ पा रहे थे

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💡 सीख :

जब भी जीवन में कोई बड़ा निर्णय लेना हो, तो भावनाओं के प्रभाव में नहीं, बल्कि धर्म (कर्तव्य) और सत्य के आधार पर निर्णय लेना चाहिए।

जीवन में भ्रम की स्थिति में शांत मन से विवेकपूर्वक विचार करना आवश्यक है।

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