श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1, श्लोक 28
अर्जुन उवाच ।
दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम् ।
सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति ॥1: 28 ॥
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हिन्दी अनुवाद:
अर्जुन बोले – हे कृष्ण! जब मैं अपने स्वजनों (रिश्तेदारों) को युद्ध की इच्छा से मेरे सामने खड़े देखता हूँ, तब मेरे अंग शिथिल हो रहे हैं और मेरा मुख सूख रहा है।
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हिन्दी में विस्तार से व्याख्या:
इस श्लोक में अर्जुन अपनी आंतरिक स्थिति व्यक्त कर रहे हैं।
जब उन्होंने देखा कि उनके ही गुरु, पितामह, भाई, पुत्र, मामा, श्वसुर और मित्र युद्धभूमि में आमने-सामने खड़े हैं और आपस में एक-दूसरे की हत्या करने को तैयार हैं, तो उनका हृदय द्रवित हो गया।
वे सोचने लगे कि अपनों को मारकर भला क्या सुख मिलेगा?
इस विचार से उनका मन अत्यंत विचलित हो गया।
शारीरिक रूप से उन्हें कमजोरी महसूस होने लगी – अंग कांपने लगे, शक्ति जाती रही और मुंह सूखने लगा।
यह श्लोक यह दर्शाता है कि अर्जुन केवल एक योद्धा नहीं थे, बल्कि एक करुणामय और संवेदनशील इंसान भी थे। युद्ध की विभीषिका और अपने प्रियजनों की हत्या का विचार उन्हें अंदर से तोड़ रहा था।
👉 यहाँ से अर्जुन विषाद योग (शोक और मोह की स्थिति) गहराता चला जाता है, जो आगे के श्लोकों में और विस्तार से बताया गया है।
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