भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 27
श्लोक
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि॥
हिंदी अनुवाद:
जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है, और जिसकी मृत्यु हो जाती है उसका पुनर्जन्म निश्चित है। इसलिए जिस घटना को रोकना मनुष्य के बस में नहीं है, उसके लिए शोक करना उचित नहीं है।
विस्तृत हिंदी व्याख्या
इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को जीवन का सबसे बड़ा सत्य समझाते हैं — जन्म और मृत्यु का चक्र।
1. जन्म और मृत्यु एक प्राकृतिक नियम हैं
भगवान कहते हैं कि जिस किसी का भी जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है। यह प्रकृति का अटल नियम है जिसे कोई नहीं बदल सकता।
इसी प्रकार, मृत्यु होने के बाद आत्मा नया शरीर धारण करती है — यह पुनर्जन्म भी निश्चित है।
2. यह चक्र मनुष्य के नियंत्रण में नहीं है
अर्जुन अपने प्रियजनों की मृत्यु की कल्पना करके दुखी हो रहा था। भगवान उसे समझाते हैं कि मृत्यु को कोई रोक नहीं सकता।
जब हम किसी ऐसी चीज़ के लिए दुख करते हैं जिसे हम बदल ही नहीं सकते, तो वह दुख हमारा बल, मन और बुद्धि कमजोर कर देता है।
3. आत्मा अमर है – केवल शरीर बदलता है
इससे पहले के श्लोकों में बताया गया है कि आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है।
जो मरता है वह देह है, आत्मा नहीं।
जब शरीर पुराना हो जाता है, आत्मा नया शरीर ले लेती है — जैसे पुराने कपड़े छोड़कर नए कपड़े धारण करना।
4. इसलिए शोक मत करो
भगवान कहते हैं:
मृत्यु अपरिहार्य है
जन्म अपरिहार्य है
यह प्रकृति का नियम है
तो जिस चीज़ को कोई नहीं रोक सकता, उसके लिए शोक करना बुद्धिमानी नहीं है।
5. संदेश हमारे जीवन के लिए
किसी के जाने का दुख स्वाभाविक है, परंतु यह भी समझो कि आत्मा कभी नहीं मरती।
जब कठिन समय आए, किसी के खोने का डर हो, तब यह श्लोक मन को स्थिर रखने में मदद करता है।
यह हमें मानसिक शक्ति देता है कि जीवन में जो भी घट रहा है वह प्रकृति के नियम के अनुसार है।
सीख
भगवद्गीता 2:27 हमें यह सिखाती है कि जन्म और मृत्यु प्रकृति के ऐसे निश्चित नियम हैं जिन्हें कोई भी रोक नहीं सकता। जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु सुनिश्चित है और जो मरता है वह फिर किसी नए रूप में जन्म लेता है। इसलिए ऐसी घटनाओं पर अत्यधिक शोक करना उचित नहीं है क्योंकि यह हमारे नियंत्रण में नहीं हैं। यह श्लोक हमें आत्मा की अमरता का ज्ञान कराता है—शरीर नश्वर है, पर आत्मा कभी नष्ट नहीं होती और केवल शरीर बदलती रहती है। इस समझ से मन मजबूत होता है, दुख कम होता है और जीवन की कठिनाइयों को स्वीकार करने की क्षमता बढ़ती है। इस श्लोक का सार यह है कि हमें प्रकृति के नियमों को स्वीकार करते हुए मन को शांत रखना चाहिए, अनावश्यक चिंताओं से दूर रहना चाहिए और अपना कर्म निष्ठा से करते रहना चाहिए।
Bhagavad Gita Chapter 2, Verse 27
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