भगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 4

            अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि।
           युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः।। 1.4 ।।

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शब्दार्थ (शब्द-शब्द अर्थ)

अत्र = यहाँ (इस पाण्डव सेना में)

शूराः = पराक्रमी योद्धा

महेष्वासाः = महान धनुर्धारी

भीमार्जुनसमाः = भीम और अर्जुन के समान

युधि = युद्ध में

युयुधानः = सात्यकि (यादव वंशी, शिष्य अर्जुन का)

विराटः = विराट नरेश (मत्स्यदेश के राजा)

च = और

द्रुपदः = द्रुपद (पाञ्चाल देश के राजा, द्रौपदी के पिता)

च = और

महारथः = महान रथी



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भावार्थ (सरल अनुवाद)

हे राजन! इस पाण्डव सेना में अनेक शूरवीर, महान धनुर्धारी उपस्थित हैं। वे युद्ध में भीम और अर्जुन के समान ही पराक्रमी हैं। इनमें युयुधान (सात्यकि), विराट राजा और महारथी द्रुपद भी सम्मिलित हैं।


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विस्तृत व्याख्या

इस श्लोक में संजय धृतराष्ट्र को पाण्डवों की सेना की शक्ति का वर्णन कर रहे हैं।

1. भीम और अर्जुन – पाण्डवों की शक्ति के मुख्य स्तंभ माने जाते थे। इसलिए उनकी तुलना अन्य योद्धाओं से की गई।


2. युयुधान (सात्यकि) – यदुवंशी वीर, कृष्ण का सखा और अर्जुन का प्रिय शिष्य। अत्यन्त पराक्रमी और निष्ठावान योद्धा।


3. विराट – मत्स्यराज, जिनके यहाँ पाण्डव अज्ञातवास में रहे थे। इन्होंने धर्म के लिए पाण्डवों का साथ दिया।


4. द्रुपद – पाञ्चाल देश के राजा और द्रौपदी के पिता। द्रोणाचार्य से वैर रखने वाले, और पाण्डवों के दृढ़ सहयोगी।



👉 संजय यहाँ यह संकेत देते हैं कि पाण्डवों की सेना केवल भीम और अर्जुन तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके साथ अनेक महारथी भी खड़े हैं। इसका उद्देश्य धृतराष्ट्र को बताना है कि कौरवों के सामने बहुत ही प्रबल और संगठित शक्ति है।

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