श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1, श्लोक 13
ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः।
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत्।। 1.13।।
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🔹 शब्दार्थ
ततः – तब, उसके बाद
शङ्खाः – शंख
भेर्यः – भेरी (बड़ा ड्रम/ढोल)
पणवाः – मृदंग (छोटे ड्रम)
अनकाः – नगाड़े
गोमुखाः – गोमुख (गाय/बैल के सींग से बने वाद्य)
सहसा – अचानक, एक साथ
एव – ही
अभ्यहन्यन्त – जोर से बजने लगे
सः शब्दः – वह ध्वनि
तुमुलः अभवत् – अत्यन्त भयंकर, गगनभेदी हो गई
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🔹 सामान्य भावार्थ
जब कौरव पक्ष के शंख, भेरी, नगाड़े, मृदंग और गोमुख आदि वाद्ययंत्र एक साथ जोर-जोर से बजने लगे, तब उस युद्धभूमि में उत्पन्न ध्वनि अत्यन्त भयंकर और गगनचुम्बी हो गई।
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🔹 विस्तार से व्याख्या
1. युद्ध की घोषणा
इस श्लोक में बताया गया है कि जब सारे युद्ध वाद्ययंत्र एक साथ बजने लगे, तो यह युद्ध आरंभ होने का संकेत था। जैसे आज के समय में युद्ध की घोषणा तोप या साइरन से होती है, वैसे ही प्राचीन काल में शंख और नगाड़े बजाकर युद्ध की शुरुआत होती थी।
2. उत्साह और भय दोनों का संकेत
कौरवों ने वाद्ययंत्र बजाकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया।
इस ध्वनि से उनके सैनिकों का उत्साह बढ़ा।
परंतु दूसरी ओर यह ध्वनि सुनकर शत्रु पक्ष (पाण्डवों) को भयभीत करने का भी प्रयास था।
3. शंख का महत्व
शंख केवल युद्ध का प्रतीक नहीं है, बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी यह पवित्र माना जाता है। इसका नाद नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और साहस भरता है। युद्ध में शंख बजाना एक तरह से दैवीय शक्ति को आमंत्रित करने जैसा था।
4. तुमुल शब्द का अर्थ
"तुमुल" का अर्थ है – गगनभेदी, भयंकर, चारों ओर फैल जाने वाला। इस ध्वनि से पूरा कुरुक्षेत्र रणक्षेत्र गूंज उठा।
5. दार्शनिक/आध्यात्मिक दृष्टिकोण
यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि जब जीवन में कोई "महायुद्ध" (चुनौती, संघर्ष) आता है, तो उसके पहले वातावरण में हलचल और गड़गड़ाहट जैसी स्थिति बनती है।
जैसे युद्ध की शुरुआत वाद्ययंत्रों से हुई, वैसे ही हमारे जीवन में संघर्ष शुरू होने से पहले ही कई संकेत मिलने लगते हैं।
यह शोर-शराबा असल में आत्मिक तैयारी का संकेत भी है कि अब हमें धैर्य और साहस के साथ आगे बढ़ना होगा।
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🔹 संक्षेप में
गीता 1:13 केवल युद्ध के शंख-निनाद का वर्णन नहीं है, बल्कि यह उस ऊर्जा, उत्साह और मानसिक वातावरण का चित्रण है जो महाभारत जैसे महान युद्ध की शुरुआत में चारों ओर फैला था।
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