भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 8
🌸 भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 8 🌸
(अर्जुन की असहाय स्थिति 😔)
🕉️ श्लोक 2.8
न हि प्रपश्यामि ममापनुद्याद्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् ।
अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धं राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम् ॥
✨ हिंदी अनुवाद:
हे कृष्ण! 😞 मैं नहीं देखता कि यह शोक, जो मेरे इन्द्रियों को सुखा रहा है,
मेरे हृदय से कैसे दूर होगा — चाहे मुझे इस पृथ्वी पर निष्कण्टक राज्य ही क्यों न मिल जाए,
या स्वर्ग में देवताओं के समान ही प्रभुता क्यों न प्राप्त हो जाए। 👑
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💭 भावार्थ :
अर्जुन अत्यधिक दुखी और निराश हैं 😢।
वह श्रीकृष्ण से कहते हैं कि उनका मन इतना शोक से भरा है कि उन्हें कोई उपाय नहीं दिख रहा जिससे यह दुख दूर हो सके।
यहाँ तक कि यदि उन्हें पृथ्वी पर अथवा स्वर्ग में सबसे बड़ा राज्य भी मिल जाए, तब भी यह पीड़ा समाप्त नहीं होगी। 💔
यह श्लोक अर्जुन की आत्मिक उलझन और मानसिक अशांति को दर्शाता है।
वह युद्ध नहीं करना चाहते, और उनका मन करुणा, मोह और दुःख से भरा हुआ है। 😔🙏
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🌼 हम क्या सीखते हैं:
जब मन शोक और मोह में डूबा हो, तब सबसे बड़ा सुख भी व्यर्थ लगता है।
सच्चा समाधान ज्ञान और आत्मबोध से ही मिलता है, न कि बाहरी उपलब्धियों से। 🌿🕉️
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Awesome
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