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Showing posts from September, 2025

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1, श्लोक 28

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अर्जुन उवाच । दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम् । सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति ॥1: 28 ॥                             गीता 1:28 --- हिन्दी अनुवाद: अर्जुन बोले – हे कृष्ण! जब मैं अपने स्वजनों (रिश्तेदारों) को युद्ध की इच्छा से मेरे सामने खड़े देखता हूँ, तब मेरे अंग शिथिल हो रहे हैं और मेरा मुख सूख रहा है। --- हिन्दी में विस्तार से व्याख्या: इस श्लोक में अर्जुन अपनी आंतरिक स्थिति व्यक्त कर रहे हैं। जब उन्होंने देखा कि उनके ही गुरु, पितामह, भाई, पुत्र, मामा, श्वसुर और मित्र युद्धभूमि में आमने-सामने खड़े हैं और आपस में एक-दूसरे की हत्या करने को तैयार हैं, तो उनका हृदय द्रवित हो गया। वे सोचने लगे कि अपनों को मारकर भला क्या सुख मिलेगा? इस विचार से उनका मन अत्यंत विचलित हो गया। शारीरिक रूप से उन्हें कमजोरी महसूस होने लगी – अंग कांपने लगे, शक्ति जाती रही और मुंह सूखने लगा। यह श्लोक यह दर्शाता है कि अर्जुन केवल एक योद्धा नहीं थे, बल्कि एक करुणामय और संवेदनशील इंसान भी थे। युद्ध की विभीषिका और अपन...

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1, श्लोक 27

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तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान्। कृपया परयाऽऽविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत्।। 1.27।।                               श्लोक 1: 27       --- शब्दार्थ तान् – उन सबको समीक्ष्य – देखकर सः कौन्तेयः – कुन्तीपुत्र अर्जुन सर्वान् – सभी बन्धून् – अपने बन्धु-बान्धवों को अवस्थितान् – खड़े हुए (युद्ध के लिए) कृपया परया आविष्टः – अत्यधिक करुणा से भरकर विषीदन् – शोकाकुल होकर इदम् अब्रवीत् – यह कहा --- भावार्थ (सरल हिन्दी में) जब अर्जुन ने दोनों सेनाओं में अपने सभी सम्बन्धियों, मित्रों, गुरुजनों और प्रियजनों को युद्ध के लिए खड़े देखा, तो उसका हृदय करुणा और दया से भर गया। अर्जुन का मन भारी हो गया, वह शोकाकुल हो उठा और अत्यधिक दुःख में डूबकर उसने भगवान श्रीकृष्ण से बात करना शुरू किया। --- विस्तृत व्याख्या इस श्लोक में अर्जुन की मानवीय संवेदना प्रकट होती है। युद्धभूमि में खड़े होकर जब उसने अपने ही चाचा, दादा, भाई, गुरु और मित्रों को देखा, तो उसका वीर हृदय भी द्रवित हो उठा। वह समझ गया कि युद्ध का प...

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 26

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तत्रापश्यत्स्थितान् पार्थः पितॄनथ पितामहान्। आचार्यान् मातुलान् भ्रातॄन् पुत्रान् पौत्रान् सखींस्तथा॥ श्वशुरान् सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि॥                             श्लोक 1.26 अनुवाद (हिंदी में): उस समय अर्जुन ने वहाँ (अपने रथ में बैठे हुए) स्थित अपने पिताओं, पितामहों, आचार्यों, मामाओं, भाइयों, पुत्रों, पौत्रों और सखाओं को देखा। भावार्थ (व्याख्या): जब अर्जुन ने युद्धभूमि में अपने गाण्डीव धनुष के साथ देखा तो उसे सामने केवल शत्रु नहीं बल्कि अपने ही बन्धु-बांधव, गुरुजन और रिश्तेदार दिखाई दिए। पितॄन् – पिता तुल्य बड़े पितामहान् – दादा और परदादा आचार्यान् – गुरुजन मातुलान् – मामा भ्रातॄन् – भाई पुत्रान् – बेटे पौत्रान् – पोते सखीन् – मित्र इस दृश्य ने अर्जुन को गहरी करुणा और मोह में डाल दिया। उसे लगा कि इस युद्ध में जीत चाहे जिसकी भी हो, पराजय निश्चित रूप से संबंधों और आत्मीय जनों की होगी। 👉 यह श्लोक अर्जुन की मानसिक स्थिति को दर्शाता है, जहाँ धर्म और मोह के बीच उसका मन डगमगाने लगता है।

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1, श्लोक 25

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भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम्। उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति।। 1.25।।                            श्लोक  1:25 --- शब्दार्थ (शब्द-दर-शब्द अर्थ): भीष्म-द्रोण-प्रमुखतः – भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने सर्वेषां च महीक्षिताम् – और सभी पृथ्वी के राजाओं के समक्ष उवाच – कहे पार्थ – अर्जुन से (कुन्तीपुत्र) पश्य – देखो एतान् – इनको समवेतान् – एकत्र हुए कुरून् इति – इन कौरवों को --- भावार्थ : श्रीकृष्ण ने अर्जुन का रथ कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि के बीच में, विशेषकर भीष्म पितामह और गुरु द्रोणाचार्य के सामने खड़ा किया। वहाँ खड़े होकर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा – “हे पार्थ! देखो इन कौरवों को जो यहाँ एकत्र हुए हैं।” --- विस्तृत व्याख्या: इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को युद्धभूमि के मध्य लाते हैं और उनके रथ को उन महापुरुषों के सामने खड़ा करते हैं जिनका अर्जुन के जीवन में विशेष स्थान था। 1. भीष्म और द्रोण का महत्व: भीष्म पितामह अर्जुन के पितामह थे और द्रोणाचार्य उनके गुरु। ये दोनों अर्जुन के...

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1, श्लोक 24

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सञ्जय उवाच – एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत। सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् ॥ 24 ॥ --- शब्दार्थ सञ्जय उवाच – संजय ने कहा एवम् उक्तः – इस प्रकार कहे जाने पर हृषीकेशः – श्रीकृष्ण (इन्द्रियों के स्वामी) गुडाकेशेन – गुडाकेश (नींद को जीतने वाले, अर्थात अर्जुन) द्वारा भारत – हे भारत (धृतराष्ट्र को संबोधित) सेनयोः उभयोः मध्ये – दोनों सेनाओं के बीच स्थापयित्वा – खड़ा कर दिया रथ-उत्तमम् – उत्तम रथ को --- भावार्थ संजय ने कहा – “हे धृतराष्ट्र! गुडाकेश (अर्जुन) द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर हृषीकेश (श्रीकृष्ण) ने उत्तम रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कर दिया।” --- विस्तृत व्याख्या 1. संजय का वर्णन अब तक अर्जुन बोल रहे थे, लेकिन इस श्लोक में फिर से संजय वर्णन करते हैं। वे धृतराष्ट्र को युद्धभूमि की स्थिति का आँखों देखा हाल सुना रहे हैं। 2. नामों का महत्व गुडाकेश – अर्जुन का नाम, जिसका अर्थ है नींद पर विजय पाने वाला। यह अर्जुन की असाधारण साधना और आत्म-नियंत्रण का प्रतीक है। हृषीकेश – श्रीकृष्ण का नाम, जिसका अर्थ है इन्द्रियों के स्वामी। इससे संकेत मिलता है कि अर्जुन की इन्द्...

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1, श्लोक 23

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योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः। धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः ॥ 23 ॥ --- शब्दार्थ योत्स्यमानान् – जो युद्ध करने वाले हैं अवेक्षे अहम् – मैं देखना चाहता हूँ ये – जो लोग अत्र – यहाँ समागताः – एकत्र हुए हैं धार्तराष्ट्रस्य – धृतराष्ट्र के पुत्र (दुर्योधन) के दुर्बुद्धेः – दुष्टबुद्धि वाले युद्धे – युद्ध में प्रिय-चिकीर्षवः – जिन्हें प्रसन्न करना चाहते हैं / जिनका पक्ष लेना चाहते हैं --- भावार्थ अर्जुन कहते हैं – “मैं उन लोगों को देखना चाहता हूँ, जो यहाँ युद्ध के लिए एकत्र हुए हैं और जो इस दुष्टबुद्धि दुर्योधन को प्रसन्न करना चाहते हैं।” --- विस्तृत व्याख्या 1. अर्जुन की दृष्टि अर्जुन अब और स्पष्ट करते हैं कि वे सिर्फ योद्धाओं को देखना ही नहीं चाहते, बल्कि यह भी जानना चाहते हैं कि कौन लोग दुर्योधन का पक्ष लेकर उसके लिए लड़ने आए हैं। 2. ‘दुर्बुद्धेः’ शब्द का प्रयोग अर्जुन दुर्योधन को दुर्बुद्धि (दुष्टबुद्धि, कुटिल बुद्धि वाला) कहते हैं। क्योंकि दुर्योधन ने अन्यायपूर्वक पांडवों का राज्य छीन लिया था और धर्म के विरुद्ध कार्य कर रहा था। 3. अर्जुन की मानस...

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1, श्लोक 22

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यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान्। कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे ॥ 22 ॥ --- शब्दार्थ यावत् – जब तक एतान् – इन सबको निरीक्षे अहम् – मैं देख लूँ योद्धुकामान् – युद्ध की इच्छा वाले अवस्थितान् – खड़े हुए कैः – किनसे मया – मेरे द्वारा सह – साथ योद्धव्यम् – युद्ध करना होगा अस्मिन् रण-समुद्यमे – इस युद्ध-प्रयत्न में --- भावार्थ अर्जुन कहते हैं – “जब तक मैं उन सब योद्धाओं को भली-भाँति देख न लूँ, जो युद्ध की इच्छा से यहाँ खड़े हुए हैं और जिनसे मुझे इस महान युद्ध में लड़ना है, तब तक मेरा रथ बीच में खड़ा कीजिए।” --- विस्तृत व्याख्या 1. अर्जुन की इच्छा अर्जुन युद्ध में उतरे तो हैं, लेकिन अब वे स्पष्ट रूप से जानना चाहते हैं कि किन-किन लोगों से उनका युद्ध होगा। वे अपने सामने खड़े योद्धाओं को ध्यानपूर्वक देखना चाहते हैं। 2. ‘योद्धुकामानवस्थितान्’ यह शब्द उन योद्धाओं को दर्शाता है जो युद्ध के लिए अत्यंत उत्सुक और दृढ़ संकल्पित खड़े हैं। अर्जुन को यह देखकर आंतरिक असहजता महसूस होती है, क्योंकि उन योद्धाओं में उनके अपने सगे-संबंधी, मित्र और गुरु भी शामिल हैं। 3. मानसिक स्थिति ...

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1, श्लोक 21

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अर्जुन उवाच – सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत। ॥ 21 ॥ --- शब्दार्थ अर्जुन उवाच – अर्जुन ने कहा सेनयोः – दोनों सेनाओं के उभयोः – बीच मध्ये – बीच में रथम् – रथ स्थापय – खड़ा कीजिए / ले चलिए मे – मेरे अच्युत – हे अच्युत (श्रीकृष्ण का नाम, जिसका अर्थ है – जो कभी न गिरें, अडिग) --- भावार्थ अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा – “हे अच्युत! मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच में ले चलो।” --- विस्तृत व्याख्या 1. अर्जुन का निवेदन युद्ध प्रारम्भ होने ही वाला था। अर्जुन ने कृष्ण से अनुरोध किया कि वे रथ को दोनों सेनाओं के बीच ले चलें ताकि वे सामने खड़े हुए योद्धाओं को ठीक से देख सकें। 2. ‘अच्युत’ नाम का महत्व अर्जुन ने कृष्ण को अच्युत कहकर संबोधित किया। अच्युत का अर्थ है – जो कभी अपने धर्म या स्थिति से नहीं गिरते। यह संकेत है कि कृष्ण सदा स्थिर, निश्चल और पूर्ण सत्य हैं। 3. अर्जुन की मानसिक स्थिति अभी तक अर्जुन बाहरी रूप से युद्ध हेतु तत्पर दिख रहे थे। लेकिन जब उन्होंने शत्रु पक्ष में अपने ही बंधु-बांधव, गुरु और मित्रों को देखा, तो उनके मन में करुणा और मोह का भाव जागृत हुआ। यही कारण है कि उन्हों...

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1, श्लोक 20

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अथ व्यवस्थितान् दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान् कपिध्वजः। प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः ॥1: 20 ॥ --- शब्दार्थ अथ – तब व्यवस्थितान् – पंक्तिबद्ध (युद्ध के लिए सज्ज) दृष्ट्वा – देखकर धार्तराष्ट्रान् – धृतराष्ट्र के पुत्रों (कौरवों) को कपिध्वजः – जिनके रथ पर हनुमानजी का ध्वज (झंडा) है, अर्थात् अर्जुन प्रवृत्ते – आरम्भ हो चुके शस्त्र-सम्पाते – अस्त्रों के प्रहार में धनुः उद्यम्य – धनुष उठाकर पाण्डवः – अर्जुन --- भावार्थ जब युद्ध आरम्भ होने ही वाला था, और कौरवों की सेना व्यवस्थित रूप से खड़ी थी, तब कपिध्वज अर्जुन (जिनके रथ के ध्वज पर पवनपुत्र हनुमान विराजमान थे) ने अपना धनुष उठाया। --- विस्तार से व्याख्या 1. कपिध्वज का महत्व अर्जुन का विशेष नाम कपिध्वज है क्योंकि उनके रथ पर हनुमानजी का ध्वज फहराता था। यह ध्वज विजय, शक्ति और आत्मबल का प्रतीक है। हनुमानजी की उपस्थिति अर्जुन को मानसिक शक्ति और भगवान श्रीराम की स्मृति प्रदान करती थी। 2. युद्ध की स्थिति शंख बज चुके थे। दोनों सेनाएँ युद्ध के लिए तैयार खड़ी थीं। इसी समय अर्जुन ने अपना गांडीव धनुष उठाया। 3. अर्जुन का मानसिक भाव अ...

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1, श्लोक 18

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द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते । सौभद्रश्च महाबाहुः शाश्त्रपाणिः प्रथक्प्रथक् ॥1:18 --- भावार्थ (सरल अर्थ) हे धृतराष्ट्र! वहाँ राजा द्रुपद, द्रौपदी के पाँचों पुत्र और अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु, सब-के-सब शस्त्र धारण किए हुए हैं। प्रत्येक वीर अपने-अपने पराक्रम में अद्वितीय और प्रसिद्ध है। --- विशेष विवरण 1. द्रुपद (पांचाल नरेश) द्रुपद पांचाल देश के महाराज थे। द्रोणाचार्य और द्रुपद की पुरानी शत्रुता थी। द्रोणाचार्य ने कभी अपने शिष्यों (पाण्डवों) की सहायता से द्रुपद को बंदी बना लिया था। अपमानित द्रुपद ने यज्ञ कराकर एक वीर पुत्र धृष्टद्युम्न को प्राप्त किया था, जो आगे चलकर द्रोणाचार्य का वध करता है। द्रुपद पाण्डवों के ससुर और द्रौपदी के पिता थे, इसलिए इस युद्ध में उनका जुड़ाव व्यक्तिगत और पारिवारिक दोनों रूप से था। --- 2. द्रौपदेयाः (द्रौपदी के पाँच पुत्र) द्रौपदी के प्रत्येक पुत्र अलग-अलग पाण्डव से उत्पन्न हुए थे – 1. प्रतिविन्ध्य – युधिष्ठिर के पुत्र। 2. सुतसोम – भीम के पुत्र। 3. श्रुतकर्मा – अर्जुन के पुत्र। 4. शतानिक – नकुल के पुत्र। 5. श्रुतकीर्ति – सहदेव के पुत्र। ➡️...

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1, श्लोक 19

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स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत् । नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलोऽभ्यनुनादयन् ॥ 1 :19  --- हिन्दी अनुवाद उस (पाण्डवों की ओर से बजे हुए शंखों) का भीषण नाद आकाश और पृथ्वी में गूंज उठा और उसकी गूंज ने धृतराष्ट्र के पुत्रों (कौरवों) के हृदय चीर डाले अर्थात् उनके मन को भयभीत और विचलित कर दिया। --- विस्तृत व्याख्या 1. युद्ध का आरंभिक संकेत – शंखनाद इस श्लोक में संजय धृतराष्ट्र को बताते हैं कि जब पाण्डवों और उनके वीर साथियों ने अपने-अपने शंख बजाए, तो उसका स्वर इतना प्रचंड और प्रचंडकारी था कि पूरा आकाश और पृथ्वी उस ध्वनि से गूंज उठा। शंखध्वनि युद्ध का प्रतीकात्मक प्रारंभ माना जाता था। यह न केवल युद्ध की घोषणा थी, बल्कि प्रतिद्वंद्वी को मानसिक रूप से डराने का साधन भी था। --- 2. धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत् इसका शाब्दिक अर्थ है – "धृतराष्ट्र के पुत्रों के हृदय चीर डाले।" यहाँ “हृदय चीरना” कोई शारीरिक चोट नहीं, बल्कि मानसिक आघात और भय का प्रतीक है। पाण्डवों की सेना का आत्मविश्वासपूर्ण शंखनाद सुनकर कौरवों के मन में अशुभ आशंका और घबराहट पैदा हो गई। --- 3. नभश्च पृथिवी...

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 17

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काष्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः। धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः।। 17 ।। --- पद्यानुवाद काश्यः च → काशी (वाराणसी) के राजा, परमेष्वासः → श्रेष्ठ धनुर्धारी, शिखण्डी च → और शिखण्डी, महारथः → महान रथी, धृष्टद्युम्नः → द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न, विराटः च → और मत्स्यराज विराट, सात्यकि च → तथा सात्यकि (युयुधान), अपराजितः → जो अपराजित है। --- भावार्थ (Meaning) इस श्लोक में पाँच प्रमुख योद्धाओं का उल्लेख है जिन्होंने पांडव पक्ष से शंखनाद किया: 1. काशिराज (King of Kashi) वाराणसी के राजा। अपने समय के सबसे श्रेष्ठ धनुर्धारी कहलाए। उनका युद्ध कौशल पांडवों की सेना को बल देता था। 2. शिखण्डी (Shikhandi) द्रुपद के पुत्र और अम्बा का पुनर्जन्म। भीष्म के वध में निर्णायक पात्र। उन्हें महारथी कहा गया है, यानी अकेले दस हजार योद्धाओं के बराबर सामर्थ्यवान। 3. धृष्टद्युम्न (Dhrishtadyumna) द्रुपदपुत्र, द्रौपदी के भाई। वे अग्नि से उत्पन्न हुए थे विशेष रूप से द्रोणाचार्य को मारने के लिए। महाभारत युद्ध में पांडवों की सेना के सेनापति। 4. विराट (Virata) मत्स्यराज, जिनके राज्य में पांडवों ने...

भगवद गीता अध्याय 1 श्लोक 16

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अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः । नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ॥ 1:16 ॥ --- शब्दार्थ अनन्तविजयम् — अनन्त विजय नामक शंख राजा कुन्तीपुत्रः युधिष्ठिरः — कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर नकुलः सहदेवः च — नकुल और सहदेव दोनों भाई सुघोष-मणिपुष्पकौ — सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख --- अनुवाद (सरल हिन्दी में) कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय नामक शंख बजाया। उनके भाई नकुल ने सुघोष और सहदेव ने मणिपुष्पक नामक शंख बजाए। --- व्याख्या यह श्लोक कुरुक्षेत्र युद्धभूमि में शंखनाद का वर्णन कर रहा है। युधिष्ठिर, जो धर्मराज कहलाते थे, ने अनन्तविजय शंख बजाया। "अनन्तविजय" का अर्थ है असीम विजय – यह उनके सत्य, धर्म और न्यायप्रिय स्वभाव का प्रतीक है। नकुल और सहदेव, जो सहदेव कुंती और माद्री के पुत्र थे, उन्होंने क्रमशः सुघोष और मणिपुष्पक नाम के शंख बजाए। सुघोष = मधुर, सुरीली ध्वनि वाला। मणिपुष्पक = मणियों की तरह चमकता और पुष्प की तरह सुगंधमय। 👉 यहाँ शंखनाद का उद्देश्य केवल युद्ध की घोषणा करना ही नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक प्रतीक भी है। शंख बजाना एक प्रकार से दैवीय ऊर्जा को जगाना औ...

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1, श्लोक 15

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पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः। पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः॥1:15 --- शब्दार्थ हृषीकेशः – श्रीकृष्ण (इन्द्रियों के स्वामी) पाञ्चजन्यं – पाञ्चजन्य नाम का शंख धनञ्जयः – अर्जुन (धन जीतने वाला) देवदत्तं – देवदत्त नाम का शंख भीमकर्मा – भीम (भयानक पराक्रम वाले) वृकोदरः – भीम का दूसरा नाम (अत्यधिक भोजन करने वाला) पौण्ड्रं – पौण्ड्र नामक शंख महाशङ्खं दध्मौ – बड़े शंख को बजाया --- भावार्थ इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण, अर्जुन और भीम द्वारा शंख बजाने का वर्णन है। भगवान श्रीकृष्ण ने ‘पाञ्चजन्य’ नामक शंख बजाया। अर्जुन ने ‘देवदत्त’ शंख बजाया। भीम, जो अपने अद्भुत बल और पराक्रम के लिए प्रसिद्ध थे, उन्होंने ‘पौण्ड्र’ नामक महाशंख बजाया। इनके शंखध्वनि से युद्धभूमि में उत्साह और उमंग का वातावरण बन गया। यह ध्वनि धर्म और सत्य की विजय का उद्घोष भी थी। --- विशेष अर्थ 1. पाञ्चजन्य शंख – यह शंख श्रीकृष्ण ने दैत्य पाञ्चजन को मारकर समुद्र से प्राप्त किया था, इसलिए इसका नाम "पाञ्चजन्य" पड़ा। यह धर्म और दिव्यता का प्रतीक है। 2. देवदत्त शंख – अर्जुन का शंख, जो उन्हें देवताओं स...

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 14

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ततः श्वेतैर् हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ। माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः।। 1.14।। --- पद-पद अर्थ ततः – उसके बाद (भीष्म और कौरवों द्वारा शंख बजाने के बाद) श्वेतैः हयैः युक्ते – श्वेत (सफेद) घोड़ों से युक्त महति स्यन्दने स्थितौ – विशाल और दिव्य रथ पर स्थित माधवः – श्रीकृष्ण (लक्ष्मीपति, माधव नाम से संबोधित) पाण्डवः – अर्जुन (पाण्डु का पुत्र) च एव – और भी दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः – दोनों ने दिव्य शंख बजाए --- भावार्थ (सरल भाषा में) भीष्म और कौरवों द्वारा शंखनाद करने के बाद, अब भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन भी युद्ध के लिए तैयार होते हैं। वे अपने विशाल रथ पर बैठे हैं, जिसे सफेद अश्व खींच रहे हैं। उसी रथ से, दोनों ने अपने-अपने दिव्य शंख बजाए। यह शंखनाद साधारण ध्वनि नहीं थी, बल्कि एक आध्यात्मिक और ऊर्जामय घोषणा थी जिसने पूरे वातावरण को हिला दिया। --- विस्तृत व्याख्या 1. श्वेत अश्वों का महत्व श्वेत अश्व पवित्रता, शांति और धर्म के प्रतीक हैं। यह संकेत है कि अर्जुन और श्रीकृष्ण धर्मयुद्ध के लिए आगे बढ़ रहे हैं। श्वेत रंग सत्य और निर्मलता का द्योतक है, जिससे यह पता चलता है...

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1, श्लोक 13

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ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः। सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत्।। 1.13।। --- 🔹 शब्दार्थ ततः – तब, उसके बाद शङ्खाः – शंख भेर्यः – भेरी (बड़ा ड्रम/ढोल) पणवाः – मृदंग (छोटे ड्रम) अनकाः – नगाड़े गोमुखाः – गोमुख (गाय/बैल के सींग से बने वाद्य) सहसा – अचानक, एक साथ एव – ही अभ्यहन्यन्त – जोर से बजने लगे सः शब्दः – वह ध्वनि तुमुलः अभवत् – अत्यन्त भयंकर, गगनभेदी हो गई --- 🔹 सामान्य भावार्थ जब कौरव पक्ष के शंख, भेरी, नगाड़े, मृदंग और गोमुख आदि वाद्ययंत्र एक साथ जोर-जोर से बजने लगे, तब उस युद्धभूमि में उत्पन्न ध्वनि अत्यन्त भयंकर और गगनचुम्बी हो गई। --- 🔹 विस्तार से व्याख्या 1. युद्ध की घोषणा इस श्लोक में बताया गया है कि जब सारे युद्ध वाद्ययंत्र एक साथ बजने लगे, तो यह युद्ध आरंभ होने का संकेत था। जैसे आज के समय में युद्ध की घोषणा तोप या साइरन से होती है, वैसे ही प्राचीन काल में शंख और नगाड़े बजाकर युद्ध की शुरुआत होती थी। 2. उत्साह और भय दोनों का संकेत कौरवों ने वाद्ययंत्र बजाकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया। इस ध्वनि से उनके सैनिकों का उत्साह बढ़ा। परंतु दूसरी ओर यह ध्वनि स...

भगवद्गीता अध्याय 1, श्लोक 12

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तस्य संजनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः। सिंहनादं विनद्योच्चैः शङ्खं दध्मौ प्रतापवान्।।1:12 --- हिंदी अनुवाद कौरवों के वृद्ध पितामह भीष्म, दुर्योधन के हृदय में उत्साह उत्पन्न करने के लिए, सिंह के समान गर्जना करके उच्च स्वर में शंख बजाते हैं। --- श्लोक का प्रसंग पिछले श्लोक (1:10–11) में दुर्योधन ने गुरु द्रोणाचार्य से अपनी सेना और पांडवों की सेना की स्थिति का वर्णन किया। दुर्योधन को यह चिंता थी कि पांडवों की सेना भले ही संख्या में कम हो, लेकिन भीम और अर्जुन जैसे महायोद्धाओं के कारण शक्तिशाली है। ऐसे समय में भीष्म पितामह ने आगे बढ़कर दुर्योधन का मनोबल बढ़ाया। --- मुख्य बिंदु 1. भीष्म पितामह का कर्तव्यभाव भीष्म ने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि वे हस्तिनापुर के सिंहासन और उसकी रक्षा के लिए जीवनभर समर्पित रहेंगे। यद्यपि भीष्म जानते थे कि धर्म की ओर पांडव हैं, लेकिन अपनी प्रतिज्ञा के कारण वे कौरवों की ओर से युद्ध कर रहे थे। 2. शंखनाद का महत्व प्राचीन काल में युद्ध का आरंभ शंखनाद से होता था। शंख की ध्वनि सैनिकों के मन में उत्साह, शक्ति और साहस भर देती थी। भीष्म के शंख की आवाज़ सिंह की गर्ज...

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 11

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         अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः।          नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः।। 11।। --- शब्दार्थ (Word Meaning) अन्ये च = और भी बहुत से बहवः = अनेक शूराः = वीर योद्धा मत्-अर्थे = मेरे लिए, मेरी ओर से त्यक्त-जीविताः = जिन्होंने अपने जीवन की आहुति दे दी है, मृत्यु को तुच्छ माना है नाना-शस्त्र-प्रहरणाः = विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित सर्वे = सभी युद्ध-विशारदाः = युद्ध-विद्या में निपुण --- भावार्थ (Meaning in Simple Hindi) दुर्योधन द्रोणाचार्य से कह रहा है – "हे आचार्य! मेरे लिए लड़ने को अनेक ऐसे वीर योद्धा उपस्थित हैं, जिन्होंने अपने जीवन को भी तुच्छ मान लिया है। वे सभी विभिन्न अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित और युद्ध-विद्या में निपुण हैं।" --- विस्तृत व्याख्या (Detailed Explanation) इस श्लोक में दुर्योधन अपनी सेना का बल दिखा रहा है और यह जताने की कोशिश कर रहा है कि उसकी ओर से लड़े जाने वाले योद्धा केवल संख्या में ही अधिक नहीं हैं, बल्कि 1. त्यागी और निष्ठावान हैं – दुर्योधन के लिए अपना जीवन तक दे...

भगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 10

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        अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम्।         पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम्।।1:10 --- भावार्थ दुर्योधन कहता है – हमारी सेना, जिसे भीष्म पितामह जैसे महान योद्धा रक्षित कर रहे हैं, वह असीम है (यानी उसकी शक्ति की कोई सीमा नहीं है)। और पाण्डवों की सेना, जिसे भीम जैसे योद्धा रक्षित कर रहे हैं, वह सीमित है (अर्थात उतनी बड़ी और प्रभावशाली नहीं है)। --- सरल व्याख्या यहाँ दुर्योधन अपने योद्धाओं का उत्साह बढ़ाने के लिए बोल रहा है। वह अपनी सेना को "असीम" बताता है, ताकि सबके मन में आत्मविश्वास बने। जबकि वास्तविकता यह थी कि पाण्डवों की सेना संख्या में भले कम थी, लेकिन साहस, रणनीति और धर्म की शक्ति से परिपूर्ण थी। दुर्योधन अपने मन में यह मानता है कि भीष्म की उपस्थिति से उसकी जीत निश्चित है, और भीम को केवल बलवान मानकर सीमित समझता है।

भगवद्गीता – अध्याय 1, श्लोक 9

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        अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः।         नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः।। 9।। --- सरल हिन्दी भावार्थ दुर्योधन कहता है – "मेरे पक्ष में और भी बहुत-से शूरवीर खड़े हैं। वे सब मेरे लिए अपने प्राणों की आहुति देने को तैयार हैं। वे विविध प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित हैं और युद्ध-कला में पूर्णतया निपुण हैं।" --- विस्तृत व्याख्या 1. दुर्योधन का आत्मविश्वास इस श्लोक में दुर्योधन अपने पक्ष के वीरों का परिचय देते हुए आत्मविश्वास जताता है। वह चाहता है कि आचार्य द्रोणाचार्य समझ लें कि उसकी सेना किसी भी दृष्टि से कमजोर नहीं है। 2. ‘मदर्थे त्यक्तजीविताः’ (मेरे लिए प्राण देने को तैयार) यह शब्द गहरा है। इसका मतलब है कि दुर्योधन ने अपने साथियों को इस स्तर तक बांध रखा था कि वे उसके लिए जान तक देने को तैयार थे। लेकिन ध्यान देने योग्य है कि यह असत्य के पक्ष में दिया जाने वाला उत्साह था। 3. शस्त्र-शक्ति का गर्व दुर्योधन यह भी बताता है कि उसकी सेना के पास विभिन्न प्रकार के शस्त्र और अस्त्र हैं। वे सभी युद्धविद्या में प्रवीण हैं...

श्रीमद्भगवद्गीता" अध्याय 1 का 8 श्लोक

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              भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिंजयं।             अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च।।1:8 --- 📝 शब्दार्थ भीष्मः – भीष्म पितामह कर्णः – महाबली कर्ण कृपः – कृपाचार्य समितिंजयं – युद्ध में विजयी (अर्थात्) अश्वत्थामा – द्रोणाचार्य का पुत्र विकर्णः – धृतराष्ट्र का पुत्र विकर्ण सौमदत्तिः – भूरिश्रवा (सौमदत्त का पुत्र) तथैव च – उसी प्रकार अन्य भी --- 🪔 सरल हिन्दी भावार्थ धृतराष्ट्र! मेरी सेना में भीष्म पितामह, कर्ण, कृपाचार्य जो युद्ध में सदैव विजयी रहते हैं, द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा, विकर्ण और भूरिश्रवा जैसे महाशूर योद्धा उपस्थित हैं। --- 📚 विस्तृत व्याख्या इस श्लोक में दुर्योधन, अपनी सेना के प्रमुख योद्धाओं के नाम गिनाता है। 1. भीष्म पितामह – कौरव सेना के प्रधान सेनापति। वे आजीवन ब्रह्मचारी और असाधारण योद्धा थे। 2. कर्ण – महारथी, दानवीर और अर्जुन के समकक्ष धनुर्धर। 3. कृपाचार्य – हस्तिनापुर के राजगुरु और शस्त्रविद्या के आचार्य। 4. अश्वत्थामा – द्रोणाचार्य का पुत्र, महान योद्धा और अमरत्व प्राप...

भगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 7

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          अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम।           नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते।।1.7।। --- शब्दार्थ (शब्द-शब्द अर्थ) अस्माकम् = हमारी ओर के तु = तो विशिष्टाः = श्रेष्ठ ये = जो तान् = उनको निबोध = जान लो द्विजोत्तम = हे ब्राह्मणश्रेष्ठ (संजय → धृतराष्ट्र को कह रहे हैं) नायकाः = सेनापति, प्रमुख वीर मम सैन्यस्य = मेरी सेना के संज्ञार्थम् = जानने की सुविधा के लिए तान् ब्रवीमि ते = उनको मैं तुम्हें बताता हूँ --- भावार्थ (सरल अनुवाद ) हे ब्राह्मणश्रेष्ठ (धृतराष्ट्र)! अब आप हमारी ओर की सेना के उन विशेष प्रमुख योद्धाओं को जान लीजिए। आपकी जानकारी के लिए मैं उनका वर्णन करता हूँ। --- विस्तृत व्याख्या अब तक (श्लोक 4 से 6 तक) संजय ने पाण्डवों की सेना के प्रमुख महारथियों का वर्णन किया। लेकिन अब दुर्योधन अपनी ओर (कौरव-पक्ष) के नायकों का वर्णन करता है। इस श्लोक में दुर्योधन अपने सेनापतियों की ओर ध्यान दिलाते हुए कहता है: “हे आचार्य (द्रोणाचार्य), पाण्डवों की सेना में अनेक महारथी हैं, लेकिन हमारी सेना में भी कई प्...

भगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 6

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        युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्।         सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः।। 1.6।। --- शब्दार्थ (शब्द-शब्द अर्थ) युधामन्युः = युधामन्यु नामक वीर च = और विक्रान्तः = पराक्रमी उत्तमौजाः = उत्तमौजा नामक वीर च = और वीर्यवान् = बलशाली सौभद्रः = सुभद्रा पुत्र (अभिमन्यु) द्रौपदेयाः = द्रौपदी के पुत्र च = और सर्वे एव = सभी महारथाः = महान योद्धा, महारथी --- भावार्थ (सरल अनुवाद) इस सेना में युधामन्यु, पराक्रमी उत्तमौजा, सुभद्रा-पुत्र अभिमन्यु और द्रौपदी के सभी पुत्र महारथी भी उपस्थित हैं। --- विस्तृत व्याख्या इस श्लोक में पाण्डवों के और महत्त्वपूर्ण सहयोगियों का उल्लेख किया गया है। 1. युधामन्यु – पाञ्चाल देश का वीर, अपनी वीरता और निडरता के लिए प्रसिद्ध। 2. उत्तमौजा – पाञ्चाल का ही बलशाली योद्धा, जिसने युद्ध में पाण्डवों की रक्षा की। 3. सौभद्र (अभिमन्यु ) – अर्जुन और सुभद्रा का पुत्र। केवल 16 वर्ष की आयु में ही अपार वीरता और युद्धकौशल का धनी। चक्रव्यूह भेदने की कला जानता था। 4. द्रौपदेय (द्रौपदी के पाँच पुत्र) – जिनका न...

भगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 5

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            धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्।             पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुंगवः।। 1.5।। --- शब्दार्थ (शब्द-शब्द अर्थ) धृष्टकेतुः = शिशुपाल का पुत्र, धृष्टकेतु च = और चेकितानः = चेकितान नामक वीर काशिराजः = काशी देश का राजा च = और वीर्यवान् = पराक्रमी पुरुजित् = पुरुजित नामक महारथी कुन्तिभोजः = कुन्तिभोज (कुन्ती के कुल का राजा) च = और शैब्यः = शैब्य नामक पराक्रमी राजा च = और नरपुंगवः = श्रेष्ठ पुरुष, वीरों में श्रेष्ठ --- भावार्थ (सरल अनुवाद) इस पाण्डव सेना में धृष्टकेतु, चेकितान, पराक्रमी काशीराज, पुरुजित, कुन्तिभोज और शैब्य जैसे वीर पुरुष भी उपस्थित हैं। --- विस्तृत व्याख्या संजय आगे पाण्डवों की ओर से लड़ने वाले अन्य महत्त्वपूर्ण योद्धाओं का वर्णन करते हैं। 1. धृष्टकेतु – शिशुपाल का पुत्र। यद्यपि कृष्ण ने शिशुपाल का वध किया था, फिर भी धृष्टकेतु पाण्डवों का पक्षधर रहा। 2. चेकितान – यादव वंश का वीर, पाण्डवों का दृढ़ सहयोगी। 3. काशिराज – काशी का राजा, अत्यन्त पराक्रमी और युद्धकौशल में निपुण।...

भगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 4

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            अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि।            युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः।। 1.4 ।। --- शब्दार्थ (शब्द-शब्द अर्थ) अत्र = यहाँ (इस पाण्डव सेना में) शूराः = पराक्रमी योद्धा महेष्वासाः = महान धनुर्धारी भीमार्जुनसमाः = भीम और अर्जुन के समान युधि = युद्ध में युयुधानः = सात्यकि (यादव वंशी, शिष्य अर्जुन का) विराटः = विराट नरेश (मत्स्यदेश के राजा) च = और द्रुपदः = द्रुपद (पाञ्चाल देश के राजा, द्रौपदी के पिता) च = और महारथः = महान रथी --- भावार्थ (सरल अनुवाद) हे राजन! इस पाण्डव सेना में अनेक शूरवीर, महान धनुर्धारी उपस्थित हैं। वे युद्ध में भीम और अर्जुन के समान ही पराक्रमी हैं। इनमें युयुधान (सात्यकि), विराट राजा और महारथी द्रुपद भी सम्मिलित हैं। --- विस्तृत व्याख्या इस श्लोक में संजय धृतराष्ट्र को पाण्डवों की सेना की शक्ति का वर्णन कर रहे हैं। 1. भीम और अर्जुन – पाण्डवों की शक्ति के मुख्य स्तंभ माने जाते थे। इसलिए उनकी तुलना अन्य योद्धाओं से की गई। 2. युयुधान (सात्यकि) – यदुवंशी वीर, कृष्ण का सखा और अर...

श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 1 श्लोक 3

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                            श्लोक 1.3                             पद्यानुसार             पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्।            व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता।।1.3।। --- हिन्दी अनुवाद हे आचार्य! देखिए पाण्डुपुत्रों की इस महान् सेना को, जिसे आपके ही बुद्धिमान शिष्य द्रुपदपुत्र (धृष्टद्युम्न) ने सुव्यवस्थित रूप से सजाया है। --- व्याख्या (विस्तार से ) 1. धृतराष्ट्र के प्रश्न के बाद — संजय कुरुक्षेत्र का वर्णन कर रहे हैं। 2. यहाँ दुर्योधन अपने गुरु द्रोणाचार्य से कहता है – "आचार्य, देखिए! पाण्डवों की विशाल सेना खड़ी है। इसे आपके ही शिष्य धृष्टद्युम्न ने व्यवस्थित किया है।" 3. दुर्योधन की बात में दो भाव छिपे हुए हैं – व्यंग्य (Taunt): द्रोणाचार्य को याद दिलाना कि उनके ही शिष्य (धृष्टद्युम्न), जिन्हें द्रोण ने शिक्षा दी थी, आज उनके विरुद्ध युद्ध के लिए खड़े हैं...

श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 1 श्लोक 2

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 सञ्जय उवाच दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा। आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत्।। --- 🔹 अनुवाद (Hindi) संजय बोले — उस समय राजा दुर्योधन ने पाण्डवों की सेना को युद्ध-व्यवस्थित देखकर अपने गुरु आचार्य द्रोणाचार्य के पास जाकर ये वचन कहे। 🔍 विस्तार से व्याख्या 1. पृष्ठभूमि कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि में दोनों पक्ष (कौरव और पाण्डव) अपनी-अपनी सेनाओं को सजाकर खड़े हैं। धृतराष्ट्र ने संजय से युद्ध का हाल पूछा था। 2. दुर्योधन की स्थिति जब दुर्योधन ने पाण्डवों की सेना को व्यवस्थित और मजबूत रूप में खड़ा देखा, तो उसके मन में भय और चिंता जागी। हालांकि वह बाहरी रूप से आत्मविश्वास और साहस दिखाने का प्रयास करता है। 3. दुर्योधन ने किससे बात की? दुर्योधन सीधे अपने सेनापति भीष्म से कुछ नहीं कहता, बल्कि अपने गुरु द्रोणाचार्य से कहता है। इससे यह झलकता है कि वह मनोवैज्ञानिक रूप से आश्वासन चाहता है, क्योंकि द्रोणाचार्य उसकी शिक्षा के गुरु थे। 4. गुप्त संदेश इस श्लोक में दिखता है कि युद्ध की शुरुआत से पहले ही भय और असुरक्षा दुर्योधन के मन में बैठ चुकी थी। ✨ दार्शनिक दृष्टि से अर्थ यह श्लोक हमें ...

श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 1 श्लोक 1

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 श्लोक धृतराष्ट्र उवाच । धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः । मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय ॥ 1 ॥ --- 📝 शब्दार्थ धृतराष्ट्र उवाच – धृतराष्ट्र ने कहा धर्म-क्षेत्रे – धर्मभूमि (पवित्र भूमि) में कुरु-क्षेत्रे – कुरु वंश की भूमि, कुरुक्षेत्र समवेता – एकत्रित होकर युयुत्सवः – युद्ध की इच्छा वाले मामकाः – मेरे पुत्र (कौरव) पाण्डवाः च एव – और पाण्डु पुत्र (पाण्डव) भी किम् अकुर्वत – क्या किया सञ्जय – हे संजय --- 🔎 सरल अनुवाद धृतराष्ट्र ने कहा – हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्रित हुए मेरे पुत्र और पाण्डु पुत्रों ने क्या किया? --- 📖 भावार्थ (विस्तार से) यह गीता का प्रथम श्लोक है। कथा की शुरुआत धृतराष्ट्र के प्रश्न से होती है। धृतराष्ट्र अंधे थे और साथ ही मोह व लोभ से भी अंधे थे। उनके सौ पुत्र (कौरव) अधर्म के मार्ग पर थे, फिर भी वे अपने पुत्रों के प्रति आसक्त थे। उन्होंने युद्धभूमि का वर्णन “धर्मक्षेत्र” और “कुरुक्षेत्र” शब्दों से किया। कुरुक्षेत्र केवल भूमि ही नहीं बल्कि धर्म का प्रतीक है। यहाँ “मामकाः” (मेरे पुत्र) और “पाण्डवाः” (पाण्डु ...