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भगवद गीता अध्याय 2 श्लोक 13

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भगवद गीता अध्याय 2 श्लोक 13 🕉️ श्लोक 2.13 देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा। तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति॥ 🌼 हिंदी अनुवाद : जैसे इस शरीर में आत्मा बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था को प्राप्त होती रहती है, उसी प्रकार मृत्यु के पश्चात वह आत्मा एक नए शरीर को प्राप्त करती है। इस परिवर्तन से ज्ञानी व्यक्ति विचलित या दुखी नहीं होता। 🌿 भावार्थ : भगवान श्रीकृष्ण यहाँ अर्जुन को जीवन और मृत्यु का गहरा सत्य सिखा रहे हैं। अर्जुन युद्धभूमि में अपने प्रियजनों को देखकर दुखी और मोहग्रस्त था। तब श्रीकृष्ण कहते हैं — “हे अर्जुन! तुम जिनके मरने का शोक कर रहे हो, वे वास्तव में मर नहीं सकते, क्योंकि आत्मा अमर है।” 🔱 विस्तृत व्याख्या : 1️⃣ शरीर परिवर्तनशील है, आत्मा नहीं मनुष्य का शरीर समय के साथ बदलता है — पहले बचपन, फिर युवावस्था, और फिर बुढ़ापा आता है। लेकिन क्या “मैं” बदलता हूँ? नहीं। जो “मैं” बचपन में था, वही “मैं” आज वृद्धावस्था में हूँ। इससे स्पष्ट होता है कि शरीर बदलता है पर आत्मा वही रहती है। 2️⃣ मृत्यु केवल शरीर...

भगवद गीता अध्याय 2 श्लोक 12

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✨ भगवद गीता अध्याय 2, श्लोक 1 2✨                        (श्री भगवान बोले ) 🕉️ श्लोक न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः। न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्॥ 💫 हिन्दी अनुवाद: न तो ऐसा कभी हुआ है कि मैं नहीं था, न तुम थे, और न ये राजा थे — और न ही आगे कभी ऐसा होगा कि हम सब नहीं रहेंगे। 🌻 श्लोक का भावार्थ : श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं — हे अर्जुन! तू यह मत समझ कि मृत्यु के बाद सबका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। मैं, तुम, और ये सब राजा — सब पहले भी थे, अब भी हैं, और आगे भी रहेंगे। आत्मा कभी नष्ट नहीं होती, वह केवल शरीर बदलती है। शरीर मरता है, पर आत्मा अमर है। विस्तृत भावार्थ : यह श्लोक आत्मा की अमरता  का गहरा संदेश देता है। भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को यह समझा रहे हैं कि — 1. आत्मा कभी जन्म नहीं लेती और कभी मरती नहीं। यह अनादि (शुरुआत से पहले की) और अनन्त (कभी समाप्त न होने व...

✨ भगवद गीता अध्याय 2, श्लोक 11 ✨

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  ✨ भगवद गीता अध्याय 2, श्लोक 1 1✨ (श्री भगवान बोले ) 🕉️ श्लोक श्रीभगवान उवाच: – अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे। गतासूनगतासु च नानुशोचन्ति पण्डिताः॥ 💫 हिन्दी अनुवाद: भगवान कहते हैं: “हे अर्जुन! तुम शोक क्यों कर रहे हो? तुम जो कहना चाहते हो वह ज्ञान से नहीं हो रहा। जो व्यक्ति ज्ञानी होता है, वह इस संसार में मृतकों के लिए शोक नहीं करता और न ही भविष्य के लिए चिंता करता है।” विस्तृत भावार्थ : 1. अशोच्यान् : ‘अ’ का अर्थ है नकार, और ‘शोच्य’ का अर्थ है शोक करने योग्य। अर्थात, “जिसके लिए शोक करना उचित नहीं है।” अर्जुन जिस कारण से शोक कर रहे हैं, वह गलत है, क्योंकि मृत्यु केवल शरीर की होती है, आत्मा अमर है। 2. अन्वशोचः : ‘अन्व’ का अर्थ है ‘परंतु’, ‘शोकः’ का अर्थ है दुःख। “तुम जो शोक कर रहे हो, वह अनुचित है।” - 3. त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे: अर्जुन ज्ञान के आधार पर बोल रहे हैं, लेकिन उनका ज्ञान अपूर्ण है। वे केवल शरीर की मृत्यु और युद्ध के भय में डूबे हुए हैं। 4. गतासूनगता...

✨ भगवद गीता अध्याय 2, श्लोक 10 ✨🌸

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✨ भगवद गीता अध्याय 2, श्लोक 10 ✨🌸 ( श्रीकृष्ण का ज्ञान प्रारंभ होने से पहले का सुंदर दृश्य ) 🕉️ श्लोक तं तथा कृपयाऽविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्। विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः॥ 💫 हिन्दी अनुवाद: इस प्रकार करुणा से अभिभूत, आँसुओं से भरी हुई आँखों वाले, शोक से पीड़ित अर्जुन से मधुसूदन श्रीकृष्ण ने यह वचन कहा। 🙏🌿 � � विस्तृत भावार्थ : यह श्लोक गीता के अत्यंत महत्वपूर्ण क्षण का वर्णन करता है — युद्धभूमि में अर्जुन पूर्ण रूप से निराश हो चुके हैं 😔। उनका मन करुणा से भरा हुआ है 💧, आँखें आँसुओं से नम हैं 😢, और उनके विचारों में केवल एक ही द्वंद्व है — “अपने ही स्वजनों को कैसे मार दूँ?” 💔 भगवान श्रीकृष्ण ने जब यह देखा कि अर्जुन अब युद्ध करने की स्थिति में नहीं हैं, उनका मन मोह, दया और भ्रम से पूरी तरह ग्रसित है — तो उन्होंने मुस्कराते हुए अर्जुन से संवाद प्रारंभ किया 😊💫। 🌻 "मधुसूदन" शब्द का अर्थ और महत्व : > "मधुसूदन" का अर्थ है — मधु नामक असुर का नाश करने वाले भगवान ...

भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 9

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             🕉️ भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 9 🕉️               ✨ "शिष्यः अर्जुन का आत्मसमर्पण" ✨ 📜 श्लोक 2.9  : सञ्जय उवाच — एवम् उक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेशः परन्तपः। न योत्स्य इति गोविन्दम् उक्त्वा तूष्णीं बभूव ह॥                                  गीता 2:9  💬 हिंदी अनुवाद : संजय ने कहा — इस प्रकार कहकर, नींद को जीतने वाले गुडाकेश (अर्जुन) ने, हे परंतप (धृतराष्ट्र)! हृषीकेश (श्रीकृष्ण) से कहा — “मैं युद्ध नहीं करूंगा।” यह कहकर वे मौन हो गए। 🤫⚔️ --------------------------------------------------- 🌼 विस्तृत व्याख्या : 👉 इस श्लोक में अर्जुन की मनःस्थिति को दर्शाया गया है। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि अब वे युद्ध नहीं करेंगे। 🛑 💔 अर्जुन के हृदय में दया, मोह और परिवार के प्रति लगाव था — वे सोच रहे थे कि अपने ही भाइयों, गुरुओं और संबंधियों का वध कैसे करें? इस मानसिक द्वंद्व में वे असमंजस में पड़ गए और युद्ध ...

भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 8

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      🌸 भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 8 🌸            (अर्जुन की असहाय स्थिति 😔) 🕉️ श्लोक 2.8 न हि प्रपश्यामि ममापनुद्याद्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् । अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धं राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम् ॥                                     गीता 2:8 ✨ हिंदी अनुवाद: हे कृष्ण! 😞 मैं नहीं देखता कि यह शोक, जो मेरे इन्द्रियों को सुखा रहा है, मेरे हृदय से कैसे दूर होगा — चाहे मुझे इस पृथ्वी पर निष्कण्टक राज्य ही क्यों न मिल जाए, या स्वर्ग में देवताओं के समान ही प्रभुता क्यों न प्राप्त हो जाए। 👑 --------------------------------------------------- 💭 भावार्थ : अर्जुन अत्यधिक दुखी और निराश हैं 😢। वह श्रीकृष्ण से कहते हैं कि उनका मन इतना शोक से भरा है कि उन्हें कोई उपाय नहीं दिख रहा जिससे यह दुख दूर हो सके। यहाँ तक कि यदि उन्हें पृथ्वी पर अथवा स्वर्ग में सबसे बड़ा राज्य भी मिल जाए, तब भी यह पीड़ा समाप्त नहीं होगी। 💔 यह श्लोक अर्जुन की आत्मिक उलझन...

भगवद गीता अध्याय 2 श्लोक 7

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               भगवद गीता अध्याय 2 श्लोक 7 कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः। यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्।।                                गीता 2:7  🕉️ हिंदी अनुवाद: मेरी स्वभाव (धर्मबुद्धि) कायरता रूप दोष से ढक गई है और मैं धर्म के विषय में मोहग्रस्त हो गया हूँ। इसलिए हे कृष्ण! मैं आपसे पूछता हूँ कि मेरे लिए क्या निश्चित रूप से श्रेयस्कर (कल्याणकारी) है — कृपया मुझे स्पष्ट रूप से बताइए। अब मैं आपका शिष्य हूँ, आपकी शरण में आया हूँ, कृपया मुझे उपदेश दीजिए। --------------------------------------------------- 💫 विस्तृत व्याख्या : इस श्लोक में अर्जुन अपनी मानसिक स्थिति को पूरी तरह से प्रकट करता है। युद्धभूमि में खड़े होकर वह समझ जाता है कि उसकी बुद्धि भ्रमित हो गई है — उसे समझ नहीं आ रहा कि धर्म क्या है और अधर्म क्या। वह कहता है कि “मेरे स्वभाव पर दया और कायरता हावी हो गई है,” यानी अर्जुन...

भगवद् गीता अध्याय 2, श्लोक 6

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               भगवद् गीता अध्याय 2, श्लोक 6 न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरीयो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयुः। यानेव हत्वा न जिजीविषामः तेऽवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः॥                                 गीता 2:6      🕉 हिंदी अनुवाद: हमें यह भी नहीं पता कि हमारे लिए क्या अच्छा है — हम जीतेंगे या वे जीतेंगे। जिन्हें मारकर हम जीना नहीं चाहते, वे ही हमारे सामने खड़े हैं — धृतराष्ट्र के पुत्र। --------------------------------------------------- 📖 विस्तार से व्याख्या: इस श्लोक में अर्जुन का मन पूरी तरह से संशय और दुविधा से भरा हुआ है। वह युद्धभूमि में खड़ा होकर सोच रहा है कि — > “अगर हम जीत भी गए, तो क्या फायदा? हमारे ही बंधु, गुरु और मित्र मारे जाएंगे। और यदि हम हार गए, तो सब कुछ खो जाएगा।” अर्जुन के मन में कर्तव्य और करुणा के बीच संघर्ष है। वह सोच रहा है कि — अगर हम उन्हें मारेंगे तो पाप लगेगा। अगर हम नहीं मारेंगे तो धर्म और न्याय का नाश हो जाएगा। इस...

📖 भगवद् गीता अध्याय 2, श्लोक 5

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            📖 भगवद् गीता अध्याय 2, श्लोक 5 श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके हत्वार्थकामांस्तु गुरुन्निहत्य। भोज्यां भोगान् रुधिरप्रदिग्धान् हत्वा सुखं मां प्रति लोकेऽह्यनार्हाः।।                                  गीता  2:5 हिन्दी अनुवाद: इस संसार में भिक्षा मांगकर भोजन करना भी उन गुरुजनों को मारने से कहीं श्रेष्ठ है जो लोभ और राज्य की कामना से ग्रस्त हैं। उन्हें मारकर हम जो भी सुख या राज्य प्राप्त करेंगे, वह उनके रक्त से सना हुआ होगा। अतः ऐसे भोग मुझे स्वीकार नहीं। --------------------------------------------------- विस्तार से अर्थ: इस श्लोक में अर्जुन अपने नैतिक द्वंद्व को व्यक्त कर रहे हैं। वह कहते हैं कि — > “यदि मुझे अपने ही गुरुओं और पूजनीय जनों (जैसे भीष्म और द्रोण) को मारना पड़े, तो ऐसा राज्य या सुख मेरे लिए व्यर्थ होगा। उनसे युद्ध कर के यदि मैं जीत भी जाऊँ, तो उनके रक्त से लिप्त भोग मुझे कभी भी आनंद नहीं देंगे।” यहाँ अर्जुन का हृदय करुणा और मोह स...

भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 4

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               भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 4 अर्जुन उवाच — कथं भीष्ममहं संख्ये द्रोणं च मधुसूदन। इषुभिः प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन।।                                     गीता 2:4 हिंदी अनुवाद: अर्जुन ने कहा — हे मधुसूदन! हे अरिसूदन! मैं युद्धभूमि में भीष्म और द्रोण जैसे पूज्यनीय व्यक्तियों पर बाणों से कैसे प्रहार करूं? --------------------------------------------------- विस्तार से अर्थ (विवरण ): इस श्लोक में अर्जुन अपनी गहरी दुविधा और करुणा व्यक्त कर रहा है। वह भगवान श्रीकृष्ण से कहता है कि — “हे मधुसूदन (मधु दैत्य का वध करने वाले)! हे अरिसूदन (शत्रुओं का नाश करने वाले)! मैं अपने गुरु द्रोणाचार्य और अपने पितामह भीष्म पर, जो मेरे लिए अति पूज्य हैं, बाण कैसे चला सकता हूं? वे मेरे आदरणीय गुरु और वरिष्ठ हैं, इसलिए उनके विरुद्ध युद्ध करना अधर्म समान प्रतीत होता है।” अर्जुन का हृदय संवेदनाओं और धर्मसंकोच से भरा हुआ है। उसे लगता है कि प्रिय और पूज...

भगवद गीता अध्याय 2 श्लोक 3

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              भगवद गीता अध्याय 2 श्लोक 3 क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते। क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परंतप॥                                           हिंदी अनुवाद: हे अर्जुन! यह नपुंसकता तुझ पर शोभा नहीं देती। हे परंतप! इस तुच्छ हृदय-दुर्बलता को त्यागकर उठ खड़ा हो। ------------------------------------------------------------------------ शब्दार्थ : क्लैब्यम् — नपुंसकता, दुर्बलता मा स्म गमः — प्राप्त मत हो, अपनाओ मत पार्थ — हे पृथापुत्र (अर्जुन)! न एतत् त्वयि उपपद्यते — यह तुझ पर शोभा नहीं देता क्षुद्रं — छोटा, तुच्छ हृदय-दौर्बल्यं — हृदय की दुर्बलता, मन की कमजोरी त्यक्त्वा — त्याग कर उत्तिष्ठ — उठो परंतप — हे शत्रुओं को जलाने वाले वीर! -------------------------------------------------- विस्तृत अर्थ और व्याख्या: यह श्लोक श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को उसके मोह और निराशा की स्थिति से बाहर लाने के लिए कहा गया है। युद्...

भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 2

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                  भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 2 श्रीभगवानुवाच — कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्। अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन॥                                      गीता 2:2   हिन्दी अनुवाद : भगवान श्रीकृष्ण बोले — हे अर्जुन! तुझमें यह मोह या कायरता कहाँ से उत्पन्न हुई है, जो इस कठिन समय में प्रकट हुई है? यह न तो श्रेष्ठ (आर्य) पुरुषों के योग्य है, न स्वर्ग प्राप्त करने वाली है, और न ही यश (कीर्ति) देने वाली है l _____________________________________________ शब्दार्थ : श्रीभगवानुवाच — भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कुतः — कहाँ से, किस कारण से त्वा — तुझमें कश्मलम् — मोह, कायरता, दुर्बलता इदम् — यह विषमे — कठिन परिस्थिति में, संकट के समय समुपस्थितम् — उपस्थित हुई अनार्यजुष्टम् — अनार्य पुरुषों (जो श्रेष्ठ नहीं हैं) का आचरण अस्वर्ग्यम् — स्वर्ग को न देने वाला अकीर्तिकरम् — अपकीर्ति (बदनामी) देने वाला अर्जुन — हे अर्जुन ____________...

भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 1

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              भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 1 सञ्जय उवाच — तं तथा कृपयाऽविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्। विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः॥                                    गीता 2:1   भावार्थ संजय ने कहा — उस समय करुणा से व्याप्त, आँसुओं से भरी आँखों वाले और अत्यंत शोकाकुल अर्जुन को देखकर भगवान श्रीकृष्ण, जो मधुसूदन नाम से प्रसिद्ध हैं, ने ये वचन कहे। --------------------------------------------------- शब्दार्थ : सञ्जय उवाच — सञ्जय ने कहा, तं — उस (अर्जुन को), तथा — उस प्रकार, कृपया आविष्टम् — करुणा से व्याप्त, अश्रु-पूर्ण-आकुल-ईक्षणम् — आँसुओं से भरी, व्याकुल आँखों वाला, विषीदन्तम् — अत्यंत शोकाकुल, इदं वाक्यम् — ये वचन, उवाच — कहा, मधुसूदनः — भगवान श्रीकृष्ण (जिन्होंने मधु नामक असुर का वध किया)। --------------------------------------------------- व्याख्या  : इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश का आरंभ होता है। अर्जुन युद्धभूमि में अपने स्वजनों क...

भगवद गीता अध्याय 1 श्लोक 47

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                    भगवद गीता अध्याय 1 श्लोक 47 संजय उवाच — एवमुक्त्वोऽर्जुनः संख्ये रथोपस्थ उपाविशत्। विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः॥ 47॥                               गीता 1:47   हिंदी अनुवाद : संजय बोले — इस प्रकार कहकर शोक से अत्यन्त व्याकुल चित्तवाले अर्जुन ने रणभूमि में अपना धनुष-बाण त्याग दिया और रथ के पिछले भाग में बैठ गए। ------------------------------------------------------------------------ श्लोक का सारांश / व्याख्या : इस श्लोक में संजय ने धृतराष्ट्र को बताया कि जब अर्जुन ने अपने सगे-संबंधियों को युद्धभूमि में अपने सामने खड़ा देखा, तो उसका मन करुणा और दुःख से भर गया। उन्होंने कृष्ण से कहा कि वे युद्ध नहीं करेंगे, और यह कहकर अपना धनुष और बाण नीचे रख दिए। अब अर्जुन की मानसिक अवस्था अत्यंत विचलित हो गई थी — वह धर्म, कर्तव्य और मोह के बीच फँस गया था। यह अध्याय — "अर्जुन विषाद योग"  — इसी स्थिति पर समाप्त होता है, जहाँ अर्जुन का मन ...

भगवद् गीता अध्याय 1 श्लोक 46

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            भगवद् गीता अध्याय 1 श्लोक 46 संजय उवाच । एवमुक्त्वार्जुनः संख्ये रथोपस्थ उपाविशत् । विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः ॥ 1.46 ॥                                  गीता 1:46 हिन्दी अनुवाद : संजय ने कहा — इस प्रकार कहकर शोक और करुणा से व्याकुल चित्त वाले अर्जुन ने रणभूमि में अपना धनुष-बाण त्याग दिया और रथ के पिछले भाग में बैठ गए। --------------------------------------------------- शब्दार्थ: एवम् उक्त्वा — इस प्रकार कहकर अर्जुनः — अर्जुन ने संख्ये — युद्धभूमि में रथ-उपस्थे — रथ के पिछले भाग में उपाविशत् — बैठ गए विसृज्य — त्याग कर स-शरं चापं — बाण सहित धनुष को शोक-संविग्न-मानसः — शोक से व्याकुल चित्त वाला ------------------------------------------------------------------ भावार्थ (विस्तार से): जब अर्जुन ने अपने स्वजनों को मारने की इच्छा से इंकार कर दिया और करुणा से भर गए, तब वे अत्यन्त दुःख और शोक से व्याकुल हो उठे। उन्होंने अपना धनुष-बाण नीचे रख दिया और यु...

भगवद गीता, अध्याय 1, श्लोक 45

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        भगवद गीता, अध्याय 1, श्लोक 45 अस्माकं तु विशिष्टाः ये तान्निबोध द्विजोत्तम। नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते।।                                गीता 1:45 संदर्भ और विवरण यह श्लोक कुरुक्षेत्र युद्ध के पूर्व भाग में आता है। अर्जुन अपने सारथी श्रीकृष्ण से संवाद कर रहे हैं। युद्ध शुरू होने से पहले अर्जुन को अपनी सेना के बल, श्रेष्ठ योद्धाओं और उनके सेनाध्यक्षों के बारे में पूरी जानकारी देने की आवश्यकता महसूस होती है। अर्जुन कह रहा है कि “हे कृष्ण! हमारे युद्ध में कुछ ऐसे योद्धा हैं जो विशेष रूप से वीर, निपुण और महत्वपूर्ण हैं। मैं उनका परिचय आपको बताऊँगा, ताकि आप मेरी सेना की ताकत और रणनीति समझ सको।” यह श्लोक इस बात को भी दर्शाता है कि युद्ध में योजना और ज्ञान कितना महत्वपूर्ण है। अर्जुन अपने वरिष्ठ सारथी श्रीकृष्ण को पूरी स्थिति स्पष्ट करना चाहता है, ताकि युद्ध के दौरान कोई भ्रम न हो। ------------------------------------------------------------------------ शब्द-श...

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 44

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        श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 44 उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन । नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम ॥१.४४॥                             गीता 1:44 हिंदी अनुवाद जनार्दन! जिन मनुष्यों के कुलधर्म नष्ट हो जाते हैं, उनका अनिश्चितकाल तक नरक में निवास होता है — ऐसा हमने सुना है। --- शब्दार्थ : उत्सन्न-कुल-धर्माणाम् — जिनके कुलधर्म नष्ट हो गए हैं मनुष्याणाम् — उन मनुष्यों का जनार्दन — हे भगवान श्रीकृष्ण नरके — नरक में अनियतं — अनिश्चित या दीर्घकाल तक वासः — निवास या रहना भवति — होता है इति — ऐसा अनुशुश्रुम — हमने सुना है --- भावार्थ : अर्जुन श्रीकृष्ण से कह रहे हैं — “हे जनार्दन! जब किसी परिवार का धर्म और परंपरा नष्ट हो जाती है, तो उस कुल के लोगों का पतन होता है। हमने सुना है कि ऐसे लोग नरक में अनिश्चित समय तक दुःख भोगते हैं।” --- विस्तृत व्याख्या: इस श्लोक में अर्जुन यह बताना चाहते हैं कि युद्ध करने से न केवल लोगों की हत्या होगी बल्कि उनके कुलधर्म (परिवार की धार्मिक परंपराएँ, संस...

भगवद् गीता अध्याय 1, श्लोक 43

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         भगवद् गीता अध्याय 1, श्लोक 43 दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसङ्करकारकैः। उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः॥                                गीता 1:43 🔹 शब्दार्थ : दोषैः — दोषों से, पापों से एतैः — इनसे कुलघ्नानाम् — कुल का नाश करने वालों के वर्णसङ्करकारकैः — वर्णसंकर (जाति-मिश्रण) उत्पन्न करने वाले उत्साद्यन्ते — नष्ट हो जाते हैं जातिधर्माः — जाति (समाज) के धर्म कुलधर्माः — कुल (परिवार) के धर्म शाश्वताः — सदा से चले आ रहे (स्थायी) --- 🔹 श्लोक का सरल हिन्दी अनुवाद: इन कुल का नाश करने वालों के द्वारा उत्पन्न हुए वर्णसंकर रूप दोषों से जाति के धर्म और कुल के शाश्वत धर्म नष्ट हो जाते हैं। --- 🔹 विस्तृत भावार्थ  : अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से कह रहे हैं कि — जब कोई युद्ध के कारण अपने ही परिवार (कुल) का विनाश कर देता है, तो उसके परिणाम बहुत भयानक होते हैं। ऐसा करने वालों से उत्पन्न हुए “वर्णसंकर” (मिश्रित जातियाँ) समाज में फैल जाती हैं। यह वर्णसंकरता धर्म, स...

भगवद् गीता अध्याय 1 श्लोक 42

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            भगवद् गीता अध्याय 1 श्लोक 42 सङ्करो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च । पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः ॥ 1.42॥                              गीता 1:42    🕉️ हिन्दी अनुवाद: वंश का नाश करने वाले और जिनके वंश का नाश हो जाता है, वे दोनों ही नरक को प्राप्त होते हैं, क्योंकि उनके पितर (पूर्वज) भी पिण्डदान और जल अर्पण की क्रिया से वंचित हो जाते हैं। --- 📖 विस्तृत अर्थ: इस श्लोक में अर्जुन यह कह रहे हैं कि — जब किसी कुल (परिवार या वंश) का नाश होता है, तब कुल-धर्म नष्ट हो जाता है। कुल-धर्म नष्ट होने से समाज में अधर्म बढ़ जाता है। ऐसे में न केवल वर्तमान पीढ़ी, बल्कि पूर्वज भी दुखी होते हैं, क्योंकि उन्हें श्राद्ध, पिण्डदान और तर्पण आदि धार्मिक क्रियाएं नहीं मिल पातीं। इससे वे स्वर्ग से पतित होकर नरक में चले जाते हैं। अर्थात, अर्जुन यह समझा रहे हैं कि युद्ध करने से न केवल जीवित लोगों को हानि होगी, बल्कि पूर्वजों की आत्माओं को भी कष्ट पहुँचेगा। इसलिए युद्ध...

भगवद गीता अध्याय 1 श्लोक 41

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             भगवद गीता अध्याय 1 श्लोक 41 संस्कृत श्लोक: अधर्माभिभवात् कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः। स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्करः।। 41।।                                 गीता 1:41 --- 🕉️ शब्दार्थ : अधर्माभिभवात् — अधर्म की वृद्धि से, जब धर्म का नाश होता है कृष्ण — हे कृष्ण! प्रदुष्यन्ति — भ्रष्ट हो जाती हैं कुल-स्त्रियः — कुल की स्त्रियाँ (परिवार की महिलाएँ) स्त्रीषु दुष्टासु — जब स्त्रियाँ दुष्ट या पतित हो जाती हैं वार्ष्णेय — हे वार्ष्णेय (वृष्णिवंशी कृष्ण) जायते — उत्पन्न होता है वर्णसङ्करः — वर्णसंकर (जाति-मिश्रण, अर्थात सामाजिक व्यवस्था का पतन) --- 🌼 हिंदी अनुवाद: हे कृष्ण! जब अधर्म का प्रबल प्रभाव बढ़ जाता है, तब कुल की स्त्रियाँ भ्रष्ट हो जाती हैं, और जब स्त्रियाँ भ्रष्ट हो जाती हैं तो समाज में वर्णसंकर (जातियों का मिश्रण, सामाजिक अव्यवस्था) उत्पन्न हो जाता है। --- 🕉️ विस्तृत व्याख्या : यह श्लोक अर्जुन के मन के गहरे नैतिक और सामाजिक द्...

भगवद गीता अध्याय 1, श्लोक 40

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          भगवद गीता अध्याय 1, श्लोक 40 कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः। धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत॥ 1:40॥                            गीता 1:40 --- हिन्दी अनुवाद  : कुल के नष्ट हो जाने पर, उस कुल के सनातन (सदियों से चले आ रहे) धर्म नष्ट हो जाते हैं। जब धर्म नष्ट हो जाता है, तब सारा कुल अधर्म से भर जाता है। --- शब्दार्थ : कुलक्षये — कुल के नष्ट हो जाने पर प्रणश्यन्ति — नष्ट हो जाते हैं कुलधर्माः — कुल के धर्म, परंपराएँ सनातनाः — प्राचीन, सदा से चले आ रहे धर्मे नष्टे — धर्म के नष्ट हो जाने पर कुलम् कृत्स्नम् — सम्पूर्ण कुल अधर्मः अभिभवति — अधर्म का प्रबल प्रभाव हो जाता है उत — निश्चय ही --- विस्तृत व्याख्या  : इस श्लोक में अर्जुन श्रीकृष्ण से कह रहे हैं कि — यदि हम अपने ही स्वजनों का वध करते हैं, तो कुल (परिवार) का नाश हो जाएगा। जब परिवार का नाश होता है, तो उसके साथ उस कुल की परंपराएँ, संस्कार, धार्मिक रीति-रिवाज और नैतिक मूल्य भी नष्ट हो जाते हैं। धर्म...

भगवद् गीता अध्याय 1, श्लोक 39

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          भगवद् गीता अध्याय 1, श्लोक 39 कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः। धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत।।1.39।।                                      गीता 1:39    हिंदी अनुवाद जब किसी कुल (परिवार) का नाश हो जाता है, तब उस कुल के सनातन (स्थायी) धर्म नष्ट हो जाते हैं, और जब धर्म नष्ट हो जाता है, तब पूरा कुल अधर्म से आच्छादित (ढक) हो जाता है। --- शब्दार्थ  : कुलक्षये — कुल के नाश होने पर प्रणश्यन्ति — नष्ट हो जाते हैं कुलधर्माः — परिवार के धर्म, परंपराएँ, संस्कार सनातनाः — प्राचीन, शाश्वत धर्मे नष्टे — धर्म के नष्ट होने पर कुलं कृत्स्नम् — पूरा परिवार अधर्मः अभिभवति — अधर्म (अन्याय, अनैतिकता) फैल जाती है --- भावार्थ  : अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से कह रहे हैं — “यदि हम युद्ध करेंगे और अपने ही परिवार के लोगों को मार देंगे, तो हमारे वंश और कुल का नाश हो जाएगा। जब कुल नष्ट होगा, तब उस कुल की प्राचीन परंपराएँ, धार्मिक संस्कार और नैत...

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 38

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              श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 38 यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतसः। कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम्॥                            गीता 1:38 शब्दार्थ   यद्यपि — यद्यपि, भले ही एते — ये (कौरव लोग) न पश्यन्ति — नहीं देखते, नहीं समझते लोभोपहतचेतसः — लोभ से ग्रस्त चित्त वाले कुलक्षयकृतं दोषं — कुल के नाश से होने वाला दोष मित्रद्रोहे च पातकम् — मित्रों से द्रोह करने में पाप --- 🪷 भावार्थ   हे जनार्दन! यद्यपि ये लोग लोभ से अंधे हो चुके हैं और इन्हें कुल के नाश में दोष या मित्रों से द्रोह करने में पाप नहीं दिखता, --- 📖 विस्तृत व्याख्या   इस श्लोक में अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से कहते हैं कि — “हे कृष्ण! ये कौरवजन लोभ से अंधे हो चुके हैं। इन्हें अपने स्वार्थ और राज्य के लोभ ने इतना घेर लिया है कि ये यह नहीं देख पा रहे हैं कि अपने ही कुल का विनाश करना कितना बड़ा पाप है। न ही इन्हें यह समझ में आता है कि अपने मित्रों और संबंधियों के साथ युद्ध करना क...

भगवद् गीता अध्याय 1 श्लोक 37

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              भगवद् गीता अध्याय 1 श्लोक 37 एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन। अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते।। 1.37।।                               गीता 1:37 शब्दार्थ : एतान् — इन (अपने बंधु-बांधवों को) न हन्तुम् इच्छामि — मारना नहीं चाहता हूँ घ्नतः अपि — चाहे ये हमें मारें मधुसूदन — हे मधुसूदन (मधु नामक असुर का वध करने वाले श्रीकृष्ण) अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः — तीनों लोकों के राज्य के लिए भी किं नु महीकृते — फिर पृथ्वी के राज्य के लिए तो क्या कहना --- श्लोक का हिन्दी अनुवाद: हे मधुसूदन! मैं इन अपने ही कुटुम्बियों को मारना नहीं चाहता, चाहे ये मुझे मार डालें। तीनों लोकों के राज्य के लिए भी मैं इन्हें नहीं मारना चाहता, तो फिर केवल पृथ्वी के राज्य के लिए तो बिल्कुल नहीं। --- विस्तृत व्याख्या   इस श्लोक में अर्जुन का करुणा और मोह से भरा हुआ हृदय स्पष्ट झलकता है। वह युद्धभूमि में खड़ा है, जहाँ एक ओर उसके सगे-संबंधी, गुरुजन, और मित्र खड़े हैं, और दू...

भगवद गीता अध्याय 1, श्लोक 36

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        भगवद गीता अध्याय 1, श्लोक 36 निहत्य धार्तराष्ट्रान्नः का प्रीति: स्याज्जनार्दन । पापमेवाश्रयेदस्मान्हत्वैतानाततायिन: ॥ 36 ॥                             गीता 1:36       हिंदी अनुवाद हे जनार्दन! धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हमें क्या सुख मिलेगा? उन आततायियों (अत्याचारी लोगों) को मारने से तो हम पर पाप ही लगेगा। --- विस्तृत व्याख्या इस श्लोक में अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से कह रहे हैं कि — 1. अर्जुन का द्वंद्व (संकट): अर्जुन कहता है कि – ये जो लोग हमारे सामने युद्धभूमि में हैं, ये भले ही अधर्म कर रहे हों, पर ये हमारे ही रिश्तेदार हैं। इन्हें मारकर हमें कोई सुख या विजय की प्रसन्नता नहीं मिलेगी, बल्कि मन में पश्चाताप और पापबोध रहेगा। 2. ‘आततायी’ का अर्थ: संस्कृत में आततायी उन लोगों को कहा गया है जो — किसी के घर में आग लगाएँ, किसी को विष दें, धन या भूमि छीन लें, किसी की पत्नी का अपमान करें, बिना कारण किसी की हत्या करें। कौरवों ने पांडवों के साथ यही सब किया — उन्होंने...

भगवद् गीता अध्याय 1 श्लोक 35

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भगवद् गीता अध्याय 1 श्लोक 35 एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन। अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते॥                                   गीता 1:35 --- हिन्दी अर्थ: हे मधुसूदन (कृष्ण)! मैं इन अपने संबंधियों को मारना नहीं चाहता, भले ही वे मुझे मार डालें। तीनों लोकों के राज्य के लिए भी मैं इन्हें नहीं मारना चाहता, तो फिर इस पृथ्वी के राज्य के लिए तो और भी नहीं। --- विस्तृत व्याख्या: इस श्लोक में अर्जुन की करुणा और मोह स्पष्ट झलकती है। वह देखता है कि युद्ध में उसे अपने ही गुरु, बंधु, और मित्रों का वध करना होगा। इसलिए उसका हृदय द्रवित हो जाता है। वह भगवान श्रीकृष्ण से कहता है — "हे मधुसूदन! चाहे वे मुझे युद्ध में मार डालें, पर मैं उन्हें मारने की इच्छा नहीं रखता। अगर मुझे तीनों लोकों (स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल) का भी राज्य क्यों न मिल जाए, तब भी मैं अपने ही संबंधियों को मारकर यह राज्य प्राप्त नहीं करना चाहता।" अर्जुन के इस कथन से यह पता चलता है कि उसका मन धर्म और कर्तव्य से भटक चुका है। वह ...

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 34

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 34 आचार्याः पितरः पुत्रास्तथैव च पितामहाः। मातुलाः श्वशुराः पौत्राः श्यालाः सम्बन्धिनस्तथा।। 1.34 ।। --- हिंदी भावार्थ (विस्तार से): इस श्लोक में अर्जुन अपने सामने खड़े युद्ध में शामिल लोगों की ओर संकेत करते हैं। वे कहते हैं – हे कृष्ण! इस युद्ध में मुझे अपने आचार्य (गुरुजन), पितर (बड़े-बुजुर्ग), पुत्र, पितामह (दादा-परदादा समान), मातुल (मामा), श्वशुर (ससुर), पौत्र (पोते-पोतियाँ), श्याल (साले), और अन्य सम्बन्धी दिखाई देते हैं। अर्जुन की स्थिति बहुत दुविधापूर्ण हो रही है। उनका मन करुणा से भर गया है और वे सोचते हैं कि यदि इस युद्ध में विजय पाने के लिए उन्हें अपने ही गुरुओं, बड़ों और परिवार के प्रिय सदस्यों का वध करना पड़े, तो ऐसी विजय का क्या लाभ होगा? --- विस्तृत व्याख्या: 1. आचार्य: यहाँ द्रोणाचार्य की ओर संकेत है, जो अर्जुन के गुरु थे। 2. पितरः: बड़े-बुजुर्ग या पिता समान। 3. पुत्राः: युद्ध में भाग लेने वाले कौरव और पांडव कुल के पुत्र। 4. पितामहाः: भीष्म पितामह, जो दोनों कुलों के पूज्यनीय थे। 5. मातुलाः: शकुनि जैसे मामा। 6. श्वशुराः: दुर्योधन ...

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1, श्लोक 33

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1, श्लोक 33 येषामर्थे काङ्क्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च। त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च।।1.33।। --- हिंदी अनुवाद जिनके लिए हम राज्य, भोग और सुख की इच्छा रखते थे, वे ही सब अपने प्राण और धन को त्यागकर युद्धभूमि में खड़े हैं। --- विस्तृत भावार्थ इस श्लोक में अर्जुन की मानसिक स्थिति और भी स्पष्ट दिखाई देती है। अर्जुन कहते हैं कि “हे कृष्ण! जिन स्वजनों, भाइयों, मित्रों और गुरुजनों के लिए हम राज्य, ऐश्वर्य और सुखों की इच्छा रखते थे, वे सभी इस युद्धभूमि में हमारे सम्मुख खड़े हैं।” इसका अर्थ यह है कि भोग और राज्य का आनंद तभी है जब अपने स्वजन साथ हों। लेकिन जब वही स्वजन इस युद्ध में शत्रु बनकर सामने खड़े हों, तो उनके वध के बाद राज्य या भोग का कोई महत्व नहीं रह जाता। अर्जुन का यह कथन उनके मोह और करुणा से उत्पन्न द्वंद्व को प्रकट करता है। उनका मन कहता है कि “अगर प्रियजनों को ही खोना पड़े, तो विजय, राज्य और धन का क्या उपयोग?” इस प्रकार अर्जुन अपने धर्म (क्षत्रिय का कर्तव्य – न्याय के लिए युद्ध करना) और मोह (परिवार व गुरु के प्रति स्नेह) के बीच...

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1, श्लोक 32

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1, श्लोक 32 श्लोक (संस्कृत): न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च। किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा।।1.32।।                                 गीता 1:32 --- हिंदी अनुवाद हे कृष्ण! मुझे न तो विजय की इच्छा है, न ही राज्य की और न ही सुखों की। हे गोविन्द! हमें राज्य से क्या लाभ? भोगों से या फिर जीवन से भी क्या प्रयोजन है? --- विस्तार से भावार्थ इस श्लोक में अर्जुन अपने मोह और करुणा से अभिभूत होकर भगवान श्रीकृष्ण से कह रहे हैं कि— युद्ध करके राज्य, विजय और सुख प्राप्त करने का जो उद्देश्य होता है, वह अब उनके लिए व्यर्थ हो गया है। क्योंकि जिनके लिए वह राज्य, भोग और जीवन चाहते थे (अपने स्वजन, गुरु, भाई और बंधु), वे सब युद्धभूमि में उनके सामने खड़े हैं। यदि उन्हें मारकर राज्य और भोग प्राप्त भी हो जाए, तो ऐसा राज्य और ऐसा जीवन किस काम का है? अर्जुन का यह कथन उनके मोह (अज्ञानजनित करुणा) का परिचायक है। वह अपने कर्तव्य (धर्मयुद्ध) को भूलकर रिश्तों और पारिवारिक स्नेह में उ...

भगवद् गीता अध्याय 1, श्लोक 31

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भगवद् गीता अध्याय 1, श्लोक 31 न च शक्नोम्यवस्थानुं भ्रान्तीव च मे मनः। निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव॥ 1:31॥ शब्दार्थ (शब्द-दर-शब्द अर्थ): न च शक्नोमि – और मैं समर्थ नहीं हूँ अवस्थानुम् – स्थिर रहने के लिए भ्रान्तीव – जैसे मोहग्रस्त हो गया हूँ मे मनः – मेरा मन निमित्तानि – लक्षण/संकेत च पश्यामि – मैं देख रहा हूँ विपरीतानि – विपरीत, अशुभ केशव – हे केशव (भगवान श्रीकृष्ण) --- हिंदी अनुवाद: हे केशव! मेरा मन भ्रमित-सा हो गया है। मैं स्थिर होकर खड़ा भी नहीं रह पा रहा हूँ। मुझे चारों ओर केवल अशुभ लक्षण ही दिखाई दे रहे हैं। --- विस्तृत व्याख्या: इस श्लोक में अर्जुन अपने भीतर की अस्थिरता और मानसिक स्थिति को व्यक्त कर रहे हैं। युद्धभूमि में खड़े होकर जब अर्जुन ने अपने स्वजनों, बंधु-बांधवों, गुरुजन और मित्रों को सामने देखा, तो उनका मन अत्यंत विचलित हो गया। वे कहते हैं कि मेरा मन भ्रांति से भर गया है, मैं अब स्थिर होकर खड़ा भी नहीं रह पा रहा हूँ। युद्ध के स्थान पर जहाँ वीरता, शक्ति और आत्मविश्वास की आवश्यकता होती है, वहाँ अर्जुन के हृदय में केवल कमजोरी और मोह उत्पन्न हो रहा है। अर...