भगवद गीता अध्याय 2 श्लोक 13
भगवद गीता अध्याय 2 श्लोक 13 🕉️ श्लोक 2.13 देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा। तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति॥ 🌼 हिंदी अनुवाद : जैसे इस शरीर में आत्मा बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था को प्राप्त होती रहती है, उसी प्रकार मृत्यु के पश्चात वह आत्मा एक नए शरीर को प्राप्त करती है। इस परिवर्तन से ज्ञानी व्यक्ति विचलित या दुखी नहीं होता। 🌿 भावार्थ : भगवान श्रीकृष्ण यहाँ अर्जुन को जीवन और मृत्यु का गहरा सत्य सिखा रहे हैं। अर्जुन युद्धभूमि में अपने प्रियजनों को देखकर दुखी और मोहग्रस्त था। तब श्रीकृष्ण कहते हैं — “हे अर्जुन! तुम जिनके मरने का शोक कर रहे हो, वे वास्तव में मर नहीं सकते, क्योंकि आत्मा अमर है।” 🔱 विस्तृत व्याख्या : 1️⃣ शरीर परिवर्तनशील है, आत्मा नहीं मनुष्य का शरीर समय के साथ बदलता है — पहले बचपन, फिर युवावस्था, और फिर बुढ़ापा आता है। लेकिन क्या “मैं” बदलता हूँ? नहीं। जो “मैं” बचपन में था, वही “मैं” आज वृद्धावस्था में हूँ। इससे स्पष्ट होता है कि शरीर बदलता है पर आत्मा वही रहती है। 2️⃣ मृत्यु केवल शरीर...